Sharira Sthan Set – 1
Amazing! Keep practicing. Best wishes. You tried well! Keep practicing. Best wishes. #1. मार्कण्डेयनुसार गर्भ में सर्वप्रथम अंग उत्पन्न होता है।
#2. राशिपुरुष है।
#3. श्रोत्र की देवता है । (सु.शा. 1:10)
#4. गलत विधान चुनिए
#5. स्तन्य की निर्मिती से होती है।
#6. खेटभुतो गर्भ का वर्णन ….. मास का है।
#7. . मृत्यु के लिए आवश्यक अरिष्ट है।
#8. माता ने स्तनपान इस दिशा की ओर मुख करके दुग्धपान करवाना चाहिये
#9. चरकनुसार दन्तदन्तउदुखल की संख्या है।
#10. प्रसूता स्त्री को सात दिन पश्चात देना चाहिए।
#11. नष्टार्तव में इन द्रव्यों से चिकित्सा करें।
#12. तस्योपरी तिल ज्ञेय तदधः………
#13. 27 फरवरी 2016 अगर एलएमपी (LMP) है तो 13 मार्च 2016 इस तिथि का समावेश इस काल में होता है । (सु. शा. 3/5)
#14. श्लेष्मणां वेष्टिताश्चपि …. भागस्तु तानुविदु
#15. धमनी यह ………… भाव है।
#16. योग्य पयार्य चुनिए । (वाग्भट ) 1. जीवितधाम 2. जीवितायतन 3. प्राण पर्याय – a) त्रयोदश b) तम c) हृदय
#17. वाग्भट ने सप्तविध प्रभा में इस प्रकार का वर्णन नहीं किया
#18. चरक के अनुसार गर्भस्था शिशु का मुख इस दिशा की ओर होता है।
#19. मलरूप एवं प्रसादरूप ये दो गुण है।
#20. कुणपगंधी शुक्र तथा कुण्णपगंधी आर्तव दोनों चिकित्सा के लिए है।
#21. आकाश इस पंचमहाभूत का कार्य है।
#22. वातवर्धक कारणों से वायु कुपित होने से गर्भ कृश होकर सुख जाता है। इस अवस्था को कहते है ।
#23. चरक ने आनुवांशिकी सिद्धांत का वर्णन इस अध्याय में किया है।
#24. मर्म विद्ध पर वायु द्वारा मांस, मज्जा, मस्तुलुंग का शोष होता है।
#25. पुंसवन विधि में …..वट शुङ्ग प्रयोग करें। अ.हृ.
#26. आनृतिकृत्वम्’…..मन का गुण है। (सु. शा. 1 / 24 )
#27. चतुर्विधमन्नपानमाशयात् प्रच्युतं पक्वाशयोपस्थितं धारयति ।
#28. मस्यवत परिवर्तन्ते । वर्णन है।
#29. गर्भसंग में योनि का धूपन करना चाहिये ।
#30. चरक शारीरस्थान में ऐसे कितने प्राणायतन है जिनका उल्लेख सूत्रस्थान में नहीं है।
#31. गर्भधारणा के बाद विशेष रूप से वर्जनीय है।
#32. गते पुराणे रजसि नवे चावस्थिते । स्त्री का वर्णन है।
#33. हेमंत ऋतु में ……. काल में शस्त्रकर्म करने का विधान है।
#34. अर्बुद व्याधि त्वचा स्तर में होता है।
#35. मासि मासि रजः स्त्रीणां रसजं स्रवति…. । (अ.हु. शा. 1 /7)
#36. सुश्रुतनुसार सर्वभूतों की उत्पत्ति का कारण है।
#37. शारंगधरनुसार बहुकोष्टक ऐसा वर्णन… अवयव का है।
#38. तुण्डनाभि में प्राय: चिकित्सा करे |
#39. स्रोतोदुष्टि के कारण में समावेश होता है।
#40. जंघोर्वोः सन्धाने….. नाम तत्र खंजता ।
#41. चरकनुसार गर्भस्थ शिशु इस न्याय से गर्भाशय में आहार प्राप्त करता है।
#42. कटिकपालेषु..
#43. चित्यंविचार्य च ध्येयं संकल्पमेव च । मन के…….
#44. चरकनुसार सन्धियों की संख्या है।
#45. विशेष रूप से आहार बिहार आदि के संबंध में सोच विचार करने योग्य विषय
#46. अव्यय’ का अर्थ निम्न में से है।
#47. प्रकृति गुणसंपत, आत्मसंपत व सात्म्य संपत ये कारण है।
#48. रक्तेन कन्यामधिकेनम् पुत्र शुक्रेन | संदर्भ लिखे ।
#49. प्रवालगुटिका समान ग्रंथि होना….. व्याधि का लक्षण
#50. धातुनां पुरण वर्ण स्पर्शज्ञानमसंशयम । ….. कार्य है।
#51. चरक नुसार गर्भिणी को इस माह में शीतल दूध का सेवन करवाना चाहिए |
#52. अग्निवायुगुणभूयिष्ठानि । मर्म है।
#53. तेजोयथाऽर्करश्मीनां स्फटिकेन तिरस्कृतम् । इसका वर्णन करने के लिए दृष्टान्त दिया है।
#54. पक्वामाशर्योमध्ये सिराप्रभवा…… ।
#55. ग्रहाम्बुदरजोधुमनिहारैरसमावृत्तम दृष्टांत है।
#56. व्यथितास्यगति’ इस प्रकृति का लक्षण है।
#57. तालुप्रदेश में अस्थियाँ होती है। (सु.शा. 5 / 21 )
#58. ‘व्यक्तताऽङ्गानां’ लक्षण गर्भ में इस मास में दिखाई देते है ।
#59. ब्रीहिप्रमाण त्वचातंर्गत विकार होते है।
#60. वाग्भट नुसार ‘अपान’ अंगुल प्रमाण में होता है।
#61. ………. हेतु विषमः ।
#62. निष्ठिविका लक्षण निम्न में से इस स्त्री में पाया जाता है।
#63. . गर्भ के पोषक रस का स्त्राव होने से गर्भ की वृद्धि नहीं होती इसे कहते है ।
#64. शारंगधर नुसार चतुर्थ कला का नाम है।
#65. आहार सम्पत भाव है।
#66. सुश्रुत ने सृष्टी उत्पत्ति के लिए कारणतत्व माने ।
#67. च सुखदुःखानाम। कारणम् पुर्नरुच्यते ।
#68. तन्मात्रा की उत्पत्ति में सहायक है।
#69. गर्भिणी का योग्य वृद्धिक्रम लिखिये । a) तृतीय मास (b) चतुर्थ मास c) सप्तम मास (d) पंचम मास 1) सर्वांगप्रत्यगविभाग: प्रव्यक्तो भवतिः 2) हस्तपादशिरसां पंचपिण्डकानिवर्त्तन्ते 3) सर्वांगप्रत्यगविभाग: प्रव्यक्ततरः 4) प्रतिबुद्धतरं भवति
#70. निद्रानाश में इस जाति के मांस सेवन का निर्देश है।
#71. वाग्भटनुसार अपांग मर्म का समावेश होता है।
#72. आहारपरिणामकर भाव में वायु का कर्म है।
#73. स्थानान्यामाग्निपक्वानां मूत्रस्य रूधीरस्य च हृदण्डुकः-
#74. नारीदेह में रन्ध्र होते है । शारंगधर
#75. हस्तपादशिरोभियों योनि भुग्नः प्रपद्यते । मूढगर्भ है।
#76. गर्भाशय में संपूर्ण अंग से युक्त रोदन……
#77. गोसर्पिनिभापितात्वचोऽधसंस्थिता च या । . भावप्रकाश
#78. चरकानुसार त्वचा है।
#79. मन्या’ मर्म का समावेश होता है।
#80. मूढगर्भ निकल जाने के बाद चिकित्सा करे ।
#81. सुश्रुताचार्य ने प्रत्यंग संख्या बतायी है।
#82. व्यस्त हनुवाले’ बच्चे का जन्म होता है । यदि,
#83. कर्म का फल मिलता है या नहीं ऐसा सोचना प्रवृत्ति है ।
#84. तमस इस लोकगत भाव का पुरुषगत भाव है।
#85. प्रसव अवस्था में ‘कृतकौतुकमंगलम्’ का निर्देश दिया है
#86. ग्रीवोर्ध्व भाग में अस्थि संख्या है।
#87. कक्षधर मर्म का समावेश सुश्रुतं व वाग्भट नुसार क्रमशः होता है।
#88. व्यक्तासितसिते सुबद्धघनपक्ष्माणि । शरीरावयव का सुलक्ष
#89. संधिबन्धनकारिण्यो दोषधातुवहाः…
#90. तत्र विद्धस्य श्यावाङ्गता ज्वरो दाह पाण्डुता शोणितागमनं ….. । स्रोतोविद्ध लक्षण है।
#91. बलि पुरुष में ज्यादा से ज्यादा रक्तनिर्हरण करना चाहिये।
#92. ‘गुढा समुत्थिताः स्निग्धा’ सिरा वर्णन है ।
#93. विषमाभिवेशो नित्यानित्य हिताहिते । लक्षण है।
#94. आचार्य कृतवीर्य ने बुद्धि तथा मन का स्थान माना है। (सु.शा. 3/30)
#95. जो रोगी सपने में लाल फूलों की माला पहनता है। ऐसे अरिष्टयुक्त रोगी की मृत्यु इस व्याधि से होती है।
#96. विसर्ग कर्म इस कर्मेन्द्रिय का है।
#97. केशलुन्चनवेदनाम् । अरिष्ट से युक्त रोगी की मृत्यु होती है।
#98. पंचाभिभूतास्त्वय पंचकृत पन्चेन्द्रियं पञ्चसु भावयन्ति ।
#99. ततो गर्भ योनिमुख प्रपत्रे. आवियों का प्रवाहन होना चाहिये ।
#100. मर्मस्थान पर कर्म वर्ज है। (अ.ह. शा. 4/63)
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