Shalya Tantra MCQ Set – 7
You are amazing! Keep practicing. Best wishes You tried well! Keep practicing. Best wishes #1. रुक्ष अरुणता कर्कश स्थिरव्रणता’ इस दग्ध का लक्षण है।
#2. शस्त्र की धारानिशानार्थ…. का प्रयोग किया जाता है।
#3. . क्रोध शोक श्रमकृतः यह कौनसी व्याधि का हेतु है ।
#4. संख्यूहिम याने……… क्षार होता है ।
#5. ग्रहदोष शमनार्थं उपाय अष्टांग के इस अंग में वर्णित है।
#6. कुठारिका का प्रयोग शस्त्रकर्मार्थ करे ।
#7. …गत शल्य ज्ञान के लिये खण्डचक्रसंयुक्त यान प्रयोग करे ।
#8. सुश्रुत नुसार खर्जुरपत्रक छेदन कौनसे भगंदर में करते है ।
#9. मनः शिला’ समान यह कौनसी जलौका का लक्षण है ।
#10. व्रण पश्चात् कर्ण में प्रक्षालन … सें करे ।
#11. सुश्रुत के अनुसार गलगण्ड व्याधि कौनसी नदी के जल सेवन से उत्पन्न होता है।
#12. सुश्रुत के अनुसार सर्वांगग्रह व तीव्रशूल लक्षण…….विद्रधि में पाया जाता है।
#13. कर्णसंधान शस्त्रक्रिया के उपद्रव कितने है ।
#14. सुश्रुत उत्तरतंत्र में अध्याय वर्णित है।
#15. भगंदर व्याधि में पथ्यसेवन कितने दिनों तक करते है।
#16. शल्यमार्गानुपसंरोह यह….. स्थानगत शल्य का लक्षण है।
#17. सुश्रुत के अनुसार मांसधावन समान स्त्राव कौनसे व्रण में पाया जाता है।
#18. अतिदग्ध की चिकित्सा इसके समान करे ।
#19. साधारण ऋतु में बंधन अवधि कितना होता है।
#20. कुक्षि, कक्षा, वक्ष प्रदेशस्थ व्रण होते है ।
#21. कुन्त: खड्म् विषाणादि के आधात से होता है।
#22. सुश्रुत के अनुसार शल्य की गति में…….. समाविष्ट है।
#23. निम्न में से कौनसा एक गण्डमाला व्याधि से संबंधित नहीं है।
#24. वृद्धि व्याधि में दोष….. के आश्रित होते है |
#25. अष्टविध मर्म में से मूत्रप्रसेक मर्म पर आघात से …….लक्षण उत्पन्न होता है।
#26. सुश्रुत के अनुसार उपयन्त्र में…. का समावेश नहीं होता है।
#27. जिह्वा अनुयंत्र का प्रयोग शल्य निर्हरण के लिये करे ।
#28. इतरथा दग्ध में….. यह अतियोग का लक्षण है।
#29. मधुकपुष्प अश्मरी….. दोषप्रधानता से उत्पन्न होता है।
#30. The vector of the Filariasis is
#31. मंदवेदना’ यह व्रणशोफ की अवस्था का लक्षण है।
#32. मांसज ग्रंथि की साध्यासाध्यता है।
#33. व्याधि के हेतु लक्षण आदि का निर्देश स्थान में है ।
#34. भिन्न अनिरस्यमान शोफ में ………….क्रियाद्वारा शल्य का निर्हरण करते है।
#35. अल्पमांस प्रदेशी…. सूचि का प्रयोग करे।
#36. खरधारम्’ ………..है।
#37. पक्व व्रणशोफ की चिकित्सा में…उपक्रम करते है ।
#38. …… दग्धे क्रियां रुक्षां विशेषेणावचारयेत् ।
#39. शाकपत्र क्या है।
#40. शस्त्राभाव में छेदन कर्म के लिये अनुशस्त्र प्रयोग करें।
#41. मणि’ द्रव्य की गणना इसमें की गयी है।
#42. सुश्रुत के अनुसार विद्रधि व्याधि में कौनसे क्षार का प्रयोग करते है।
#43. व्रणकर्म में धूपन कर्म कितने दिन तक करते है।
#44. वाग्भट के अनुसार विलम्बित कौनसे व्रण का प्रकार है।
#45. मूत्रवृद्धि में सिरावेध करे।
#46. निम्न में सहज व्याधि कौनसा है।
#47. पिच्चित व्रण की चिकित्सा………की जाती है।
#48. शेफालिका’ का उपयोग….. शस्त्रकर्मार्थ होता है।
#49. दर्व्याकृति शलाका का उपयोग किस कर्म के लिये होता है ।
#50. ………नामं वयःस्थापन आयुर्मेधाबलकरं ।
#51. सुश्रुत के अनुसार प्रकृतिस्थ रक्त का रस
#52. सृप’ ये जांगम प्राणि…………वर्ग में अधिन है।
#53. अश्मरी व्याधि में कौनसा शस्त्रकर्म करते है |
#54. व्रण में कटुगंध…. दोष के कारण उत्पन्न होता है।
#55. आमतैल परिषेक कौनसे भग्न की चिकित्सा में वर्णित है।
#56. मणिबंध के उपर त्रिरेखा दहन कौनसी व्याधि की चिकित्सा है।
#57. संग्रहकार नुसार अनुशस्त्र है।
#58. आरा व करपत्र का ग्रहण भाग से करे।
#59. अर्धांगुलमुखे: अष्टकण्टक… वर्णन शस्त्र का है।
#60. भेदन कर्म निषेध है।
#61. सुलोहानि यह निम्न में से किसका गुण है।
#62. . शाखागत अवेध्य सिरायें कितनी है।
#63. गलगण्ड व्याधि में दोष कहा स्थानसंश्रय करते है।
#64. सुश्रुत के अनुसार कृष्णता लक्षण क्षारकर्म में पाया जाता है |
#65. तृतीयक ज्वर में रक्तमोक्षणार्थ सिरावेध करे। वाग्भट
#66. निम्नतः सविष जलौका है।
#67. मांस स्थानगत व्याधियों में अग्निकर्मार्थ…….का उपयोग करते हैं।
#68. सुश्रुत के अनुसार लोक कितने प्रकार के है ।
#69. श्रृंग से …. दोष मे रक्तावसेवन करना चाहिये ।
#70. गलस्रोतोरोग छेदनार्थ शस्त्र प्रयोग करे |
#71. सुश्रुत के अनुसार क्षार के गुणों में…. का समावेश नहीं होता है।
#72. निम्न में से कौनसा रक्तदुष्टिजन्य व्याधि है । च. सू. 24
#73. निम्न में से कौनसी व्याधि में क्षार का प्रयोग नहीं करते है।
#74. अल्पशोफता’ यह व्रणशोफ की…. अवस्था का लक्षण है।
#75. मधुशीग्र का प्रयोग कौनसी व्रणशोफ अवस्था में किया जाता है।
#76. सुश्रुतनुसार पिपासा यह व्याधि है ।
#77. अर्धेन्दु सन्निभम्… यंत्र का स्वरूप है।
#78. कृमि प्रादुर्भाव लक्षण कौनसे भगंदर में पाया जाता है।
#79. प्रवालदलनिचयप्रकाश स्त्रावयुक्त व्रण में…… दोषाधिक्य होता है।
#80. धनुर्वक्र सुचि का स्वरूप होता है।
#81. जत्रुर्ध्व प्रदेशी….. बंध उपयुक्त |
#82. इन्द्रलुप्त व्याधि में कौनसा पंचकर्म वर्णित है।
#83. ब्रण षष्टी उपक्रम के अनुसार पाण्डुकर्मार्थ…. द्रव्य का प्रयोग किया जाता है।
#84. अशस्त्रकृत रक्तमोक्षण के कितने प्रकार है।
#85. आलवत् बहुरंध्रकः’ यह कौनसे बंध का लक्षण है।
#86. मांसपेशीप्रभ रक्तस्त्राव में….. दोष का आधिक्य होता है।
#87. सिराज ग्रंथि की साध्यासाध्यता…….है।
#88. चालनकर्मार्थ…. यंत्र उपयोगी है।
#89. शरीर धारणात् धातवः उच्यते तेषां क्षय बृद्धि….. निमित्ते । सु. सू. 14
#90. अरिष्ट लिंग ज्ञान का साधन है।
#91. शुक्र वेग को रोकने कौनसा व्याधि उत्पन्न होता है
#92. चतुर्विध उपक्रमों में संधान के लिये प्रयुक्त करे ।
#93. सुश्रुतानुसार क्षीघ्र के 2 अंगुल उत्तर सिराव्यधन कौनसी व्याधि में किया जाता है।
#94. सुश्रुत के अनुसार भगंदर शस्त्रकर्म में वेदना शमनार्थ का प्रयोग करते हैं।
#95. ज्वलनेनेव दह्यते लक्षण कौनसी विधि में पाया जाता है।
#96. सुश्रुत के अनुसार बंध विशेष कितने है |
#97. जातेषु कण्ठासक्त शल्य निर्हरणार्थ…..प्रयोग करे।
#98. सुश्रुत के अनुसार शस्त्रकर्म में….. का समावेश नहीं होता है।
#99. सुश्रुत के अनुसार विसर्प व्याधि के प्रकार…है
#100. लेखन कर्म करने के लिये योग्या प्रयोग करे |
Results



