PTSR MCQ set – 9
#1. नैवातिबहुनत्यल्प……शुद्ध आदीशेत
#2. गर्भसंग में योनि का धुपन….. से करे।
#3. प्रसुवोत्सुका एवं आसन्नप्रसवा प्रसव की अवस्था मानी है।
#4. देवताप्रतिमायां दौहृदय पूर्ति से उत्पन्न बालक होता है।
#5. षष्ठे मासी गर्भस्य…. उपचंय भवति ।
#6. रजक्षीणता में…. चिकित्सा करनी चाहिए।
#7. परिहियमानात एव न स्फुरति न च कुक्षिविवर्धते ।
#8. पंचधा प्ररोहति । गर्भ का इस माससंबंधी वर्णन है।
#9. Common cause of Aborition in 2nd trimesters is
#10. वैरस्य स्तन्य दोष यह दोष प्रधान रहता है।
#11. संग्रहकारनुसार मूढगर्भ की गति है ।
#12. मूढगर्भ के प्रकार है।
#13. चरकनुसार वातज योनिव्यापद की संख्या
#14. Pale white colour Lochia is called
#15. Palmer sign is present at …….. weeks of pregnancy
#16. ग्रंथीभूत आर्तव दोष प्रधान है।
#17. Purperium is period measures about approx.
#18. गर्भस्तु खलु मातुः पृष्ठाभिमुख उर्ध्वशिरा संकुच्याऽगान्यास्तेन । संदर्भ
#19. रजः काल के दिन मैथुन करने से होने वाला गर्भ अपुर्णाग होता है।
#20. विशेषतः स्त्री को योनि रोग होते है।
#21. Blastocyst implanted on …….day
#22. निम्न में से मृतगर्भ के लक्षण है।
#23. चरकाचार्य ने ‘ब्राह्मी’ द्रव्य का वर्णन गर्भस्थापन गण में
#24. जीवनीय सिद्ध क्षीर इस योनिव्यापद की चिकित्सा है।
#25. सुखप्रपानौ विशेषण प्रयुक्त होता है।
#26. चरकनुसार गर्भिणी परिचर्या में क्षीरसपीं पान मास में करें।
#27. नंष्टार्तव में पाया जाता है।
#28. …..चिकित्सार्थ आमगर्भ का उपयोग करना चाहिए।
#29. रक्तप्रदर के कारण और क्षीरदोष सामान्य कारण समान होते है।
#30. गर्भ धारण पुर्व पुरुष को सेवन करना चाहिए ।
#31. कुर्यात विण्मूत्रसंगार्ति शोष योनि मुखस्य च । योनिव्यापद है।
#32. प्रसन्न विमल शीत निर्गन्धी स्राव है।
#33. गर्भोपुष्टो यदा वर्षगणैरपि स्यात। च
#34. Dusky hue of vestibule and anterior vaginal wall present in…. sign
#35. Dusky hue of vestibule, anterior vaginal wall presents at
#36. पुष्टौऽन्यथा वर्षगणैः कृच्छ्राताजायते, नैव वा…
#37. विष्कंभ मूढगर्भ चिकित्सार्थ होता है।
#38. तक्रारिष्ट प्रयोग इस स्तनरोग की चिकित्सा है।
#39. सुश्रुतनुसार वातज योनिव्यापद है।
#40. Average weight gain of liquor in pregnancy is
#41. सिद्धार्थक तैल बस्ति इस की चिकित्सार्थ प्रयुक्त करते है।
#42. उदावर्तनाशकं …. बस्ति है।
#43. जोडीयां मिलाएं। 1) किंशुकोदकस्त्राव 2) वसामज्जासमस्त्राव 3) पुलाकोदकसस्त्राव a) ध्वजभंग b) वातज प्रदर c) सन्निपातिक प्रदर
#44. वलयीकृम लिंग’ क्लैब्य का लक्षण है।
#45. पुराण रज दोष प्रधान अवस्था में रहता है।
#46. Male pills is called as
#47. परिचारिका के गुण है।
#48. मंथर गति है।
#49. संवृत्त’ योनि चिकित्सार्थ कर्म करना चाहिये ।
#50. Hegar’s sign is………….
#51. Treatment advised in fibroid uterus is
#52. Shape of uterus at 28th week is
#53. माधव निदान के अनुसार ‘योनिकन्द’ आकार होता है।
#54. स्त्री शुक्र एवं बाल शुक्र का वर्णन किया है।
#55. शंखनाभ्याकृति’ ऐसा वर्णन पुरुष शरीर में इस अवयब संबंधी है।
#56. वाय्वग्निभूम्यष्गुणपादवत्तत् षडभ्यो रसेभ्यः प्रभवश्च तस्य । च. शा. 2/4 संबंधी वर्णन है।
#57. तत्….. भवेद्वातात क्षीप्तचं प्लवते ऽमभसि । दुष्ट स्तन्य है।
#58. श्वेतस्वती वा कफम । कफवातामय व्याप्ता सा स्याद….
#59. आश्वासन चिकित्सा प्रसव की… अवस्था में करे ।
#60. पुर्णमेवतैलपात्रंसमं रक्षा करने का प्रावधान है।
#61. Failure rate of rhythmnic method as contraceptive
#62. स्तनरोग में दुष्य होते है।
#63. वाग्भट ने योनिव्यापद का वर्णन इस अध्याय में किया है।
#64. तत्र आदौ स्तन्यशुद्ध धात्री…. प्रपादीत्।
#65. ‘सोमरोग’ में मुख्यतः दोषों की प्रधानता होती है।
#66. उपप्लुता योनिव्यापद में दोषप्राधान्य होता है।
#67. गर्भिणी कार्शत्वमापद्यते … मांस का वर्णन है।
#68. वैरस्य क्षीरदोष में इस दोष की प्रधानता होती है।
#69. गर्भ की नेत्रविकृति में कफप्रधान विकृति है ।
#70. आसन्नप्रसवा, उपस्थितप्रसवा इन अवस्थाओं का वर्णन आचार्य ने किया है।
#71. सुश्रुतनुसार सूतिका काल होता है।
#72. गर्भिणी उदावर्त में इस अवस्था में बस्ति देना चाहिए।
#73. पृथकपर्ण्यादि सिद्ध बस्ति गर्भिणी को इस माह में देते है।
#74. सप्तम मास में मासानुमासिक चिकित्सा द्रव्य प्रयोग करें।
#75. गर्भोदक स्रुति’ प्रसव अवस्था का लक्षण है।
#76. Theoretically ideal method of contraceptive is
#77. मद्य निंब गुडूची के साथ…. असृग्दर की चिकित्सा करें।
#78. तृप्तीगुरुत्वं स्फुरणं शुक्रास्रावनुबंधनम् – लक्षण
#79. वातज पित्तज कफज मूढगर्भ के प्रकारआचार्य ने वर्णन किये है।
#80. सूतिका ज्वर के प्रकार है।
#81. सूतिका को प्रसव के बाद प्रथम तीन दिन पान करना चाहिये ।
#82. स्त्री कटि में स्थित 8 मर्मों का वर्णन है।
#83. प्रविष्टमात्रं बीजं हि रक्तेन परिवेष्टते। संदर्भ
#84. Fundal height midway between pubis and umbilicus
#85. यकृत की उत्पत्ति…. इस गर्भज भाव से होती है।
#86. तत्रश्लेष्मवर्धन द्रव्य प्रयोगो
#87. कलीकलहशील……..|
#88. Skene’s duct is present in
#89. गर्भ का स्त्री वा पुरुष लिंग परिवर्तन करना याने
#90. Choose incorrect option about placenta – a. It is discoid in shape b. Thickness is 2.5 c. Weight of 530 gm d. Placenta diameter 8-9 angul
#91. Common position of foetus in uterus is
#92. हारीतनुसार दुष्टी ज्वर का प्रमुख कारण है।
#93. This sign is true about osiander pregnancy sign.
#94. दक्षिण पार्श्व में बीज ग्रहण से …. दोष प्रकोपित होता है।
#95. रजस्वला स्त्री को विशेष व्याधि होता है।
#96. लक्षण और विकार में योग्य मिलाप करें। 1. गर्भवृद्धि न प्राप्नोति 2. स मातुः कुक्षि पूरयति मन्दं स्पन्दते 3. गर्भवृद्धि न प्राप्नोति परशुष्कत्त्वात 4. गर्भ प्रसृप्तो न स्पंदते >> a) शुष्यति गर्भ b) उपशुष्कक d) लीनगर्भ c) नागोदर
#97. आघप्रसवा, उपस्थित प्रसवा यह प्रसव की अवस्थाएं इस आचार्य ने वर्णन की है।
#98. योनिमुख से श्लेष्मस्राव तंन्त्रीवर्ण का होगा तो….जन्म होता है।
#99. मक्कल शूल चिकित्सा में प्रयोग करना चाहिए। सुश्रुत
#100. एक 35 वर्षीय गर्भिणी महिला के आहार में हेतुस्वरूप अति गुलाबजामुन प्रियता देखी गयी। अगर हेतु परिवर्जन न किया गया हो तो इस अवस्था में जन्मे हुये बालक में निम्न में से यह जन्मजात विकृति होने की संभावना है।
Results



