PTSR MCQ set – 5
#1. वातदूषित स्तन्य प्राय रसात्मक होता है।
#2. नाड़ी पर बीर्यपात हुआ तो पुत्रप्राप्ति होती है।
#3. लोहितक्षरा योनिव्यापद…. आचार्य ने वर्णन किया है।
#4. भगस्याध – स्त्रिया बस्तिरुर्ध्व …. स्थित ।
#5. Master cells of ovary is
#6. स्त्री शरीर में कुल पेशियाँ होती
#7. Amniotic fluid is in nature
#8. इंद्रगोपसंकाश आर्तवं शुद्धमादिशेत । संदर्भ
#9. हरिताल वर्ण स्राव प्रदर का है।
#10. नष्टार्तवा’ कहते है।
#11. Third degree placenta previa is
#12. क्षताच्च नखदंताद्यैः वाताद्याः कुपिता मला पुयशोणित संकाश…..
#13. Is the warning sign of toximia if weight gain is
#14. अगर आप के विचार से गर्भाशय में सर्वप्रथम इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है तो आप इस आचार्य के मत से साधर्म्य रखते हो।
#15. योनिसंवरण’ व्याधि का वर्णन… ने किया है।
#16. गर्भिणी ने नस्य सेवन किया तो उपघात में होता है।
#17. Blood loss in 3rd stage of labour is
#18. गर्भपात के बाद अर्तिविस्मरणार्थ… का पान करें।
#19. In krukenber’gs tumour secondary involvement of …… may cause.
#20. मूढगर्भ के प्रकार है।
#21. योनिव्यापद एवं उनके लक्षण संबंधी सत्य विधान चूनिए । 1. नित्यवेदना – विप्लुता (सुश्रुत) | 2. अतिवेदना – शुष्का (वाग्भट) | 3. अल्पवेदना – कफज (चरक)
#22. सुतिकागार निर्माणार्थ वैश्य के लिये भूमी चयन का उपदेश है।
#23. शोणितेगर्भाशय बीजभावयवः प्रदोष मापद्येते तदा
#24. एक ही बार गर्भ धारण करनेवाली बन्ध्या है।
#25. धरा’ पर्यायी नाम है। शां
#26. अश्मान्तर्गत एवं भवत्यंऽस्पन्दनो गर्भः
#27. स्तनविद्रधि के प्रकार है।
#28. वाग्भटानुसार गर्भसंग… से नहीं होता ।
#29. सवात उदीरेत बीज….. रजसायुतम |
#30. कुर्यात विण्मूत्रसंगार्ति शोष योनि मुखस्य च । योनिव्यापद है।
#31. द्वित्रिबिंदुकावस्थं……..1 वा. सु. टीका
#32. अंतफल का प्रमाण है।
#33. नक्तचारीनी गर्भवती स्त्री में यह गर्भविनाशक भाव निदर्शन में आता है।
#34. ‘खरस्पर्शा च मैथुना’ इस योनिव्यापद का लक्षण है।
#35. प्रसव समय गर्भ का शिर उपर रहकर योनि में प्रवेशित होना….. गति है।
#36. प्रसन्न विमल शीत निर्गन्धी स्राव है।
#37. चरकाचार्य के नुसार गर्भिणी परिचर्या में पांचवे मांस में…… सेवन करें।
#38. आत्रेय ने पुष्यानुग चूर्ण का अनुपान वर्णन किया |
#39. चरकानुसार गर्भाधान काल है।
#40. शरीर धारण करनेवाले आप धातु का नाम है। यो.. र.
#41. Is the organ of coapulation
#42. क्लमोगात्राणां ग्लानीरआननस्य अक्ष्णो शौथिल्य…..लक्षण प्रसव अवस्था के है।
#43. ऋतुकाल में अभ्यंग करने से बालक होता है।
#44. कटिपृष्ठप्रतिसमन्ताद् वेदना | प्रसव अवस्था है।
#45. ‘शुक्र मंड समान रहने पर गर्भ का वर्ण होता है।
#46. प्रसिच्यते योनिश्लेष्माश्च ।’ लक्षण है।
#47. रजःकाल में प्रधान दोष होता है।
#48. Gossypol is the content of
#49. Under MTP act 1971 consent is required
#50. गर्भिणी आहाररस कार्य करता है।
#51. Position of breast is between…. ribs
#52. भावत्यक्तविग्रह ससद्भूतांगावयवः । गर्भवृद्धि मांस है।
#53. प्लवते अंभसी यह दुष्ट स्तन्य लक्षण है।
#54. चरकानुसार श्रोणिफलकास्थि है।
#55. उदरवृद्धमप्यत्र हीयते स्फुरणं चिरात् …. ।
#56. कफज स्तन्यदोष के इस गुण से हृद्रोग होता है ।
#57. परिचारिका के गुण है।
#58. Hegar’s sign is………….
#59. चरक, सुश्रुत, बाग्भट नुसार स्त्री श्रोणि के अस्थि है। .
#60. पुसंवन विधि का उद्देश है। चक्रपाणि
#61. नच आवी’ इस गर्भोपद्रव के लक्षण है।
#62. गर्भ शोणित से हृदय उत्पत्ति व हृदय से ….. । काश्यप
#63. सुश्रुतनुसार वातज योनिव्यापद है।
#64. दौहृद अवमान से गर्भ होता है।
#65. गुडुच्यादि तैल’ उपयोग योनिव्यापद चिकित्सा के लिए करते है।
#66. माधव निदान के अनुसार ‘योनिकन्द’ आकार होता है।
#67. Blastocyst implant on day
#68. स्थिर शरीरस्य पात…. ।। सु.नि.
#69. अष्टममास में क्षीर यवागू पानार्थ निषेध किया ।
#70. चरकनुसार वातज योनिव्यापद की संख्या
#71. परिहियमाणो गर्भः चिरात किंचित स्पंदते। सं. शा. 4/13
#72. शूल अधिकम् न आवि न प्रस्त्रवति । लक्षण है।
#73. देशानुसार सूतिका परिचर्या आचार्य की देन है |
#74. …….is the surgical management of tubal pregnancy.
#75. व्यंजनवती योनि का लक्षण है।
#76. Suppression of ovulation causes due to contraceptive
#77. सुश्रुताचार्यनुसार लांगलीमुल कल्क का हस्तपादतला पर लेप चिकित्सार्थ करते है |
#78. प्रदरव्याधि चिकित्सार्थ आखुपुरीषसदुग्ध चिकित्सा निर्देश दिया है।
#79. गते पुराणे राजसी नवे चावस्थिते शुद्ध । च.शा. 4
#80. This episiotomy is commonly used
#81. गर्भ का पोषण इस न्याय से होता है। वाग्भट.
#82. तृप्तीगुरुत्वं स्फुरणं शुक्रास्रावनुबंधनम् – लक्षण
#83. कृष्णश्याम वर्ण में तेज के साथ यह महाभूत है। सुश्रुत
#84. ……. स्तनयो: तासा यौवने परिवृद्धि । पेशियाँ है ।
#85. सुश्रुतनुसार अत्यानंदा दोष प्रधान योनिव्यापद है।
#86. पिस से दूषित स्तन्य दोष है।
#87. …….नुसार कृमि भी गर्भपात का हेतु है ।
#88. सुश्रुतनुसार पृथकपर्ण्यादिसिध्दम घृत सेवन…. मास में करें।
#89. वरण बंध का प्रयोग आचार्य ने माना है
#90. सुश्रुतनुसार उपविष्टक का लक्षण है।
#91. सुतिका स्त्रीस प्रथम 3-5 दिन में अग्निबल का विचार कर मण्ड……साथ में लेना चाहिए।
#92. शुक्र शोणित गर्भाशयस्य आत्म प्रकृति विकार समुर्च्छित । संदर्भ
#93. व्रणवत चिकित्सा…. क्लैब्य में करें।
#94. Oral contraceptive pills are started on…… day of menstrual cycle.
#95. पीनस दूषित स्तन्यपान से होने वाला व्याधि है।
#96. चरक के अनुसार योनिव्यापद के हेतु है ।
#97. शुक्र शोणित गर्भाशयवस्था आत्म प्रकृति विकार समूर्च्छित । संदर्भ
#98. ………..इस गर्भोपघातकर भाव से गर्भनाडी कण्ठभाग में वेष्टीत होती है।
#99. मुक’ बालक को…. इस गर्भोपघातक भाव स्वरूप प्राप्त ‘ होता है।
#100. जीवनीय सिद्ध क्षीर इस योनिव्यापद की चिकित्सा है।
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