PTSR MCQ set – 4
#1. गर्भशल्यहरण में प्रथम कर्म करें।
#2. बीज इति… च.शा. 3-23 चक्र
#3. रेखा स्वरूप त्वकसंकोच । …… इंदु ….
#4. Common causative organism for PID is
#5. अवांडमुखी मूढगर्भ गति का विशेष वर्णन किया ।
#6. तासा यौवने परिवृद्धिर्भवति । का वर्णन है।
#7. नीलपुष्प प्रतिकांश’ यह वर्णन… अर्श व्याधि का है !
#8. गर्भिणी सांत्वन व आश्वासन प्रसव अवस्था में करे।
#9. Is the warning sign of toximia if weight gain is
#10. शुक्तमस्तुसुरादिनिभजन्त्यः कुपितोऽनिलः व्याधी हेतु है ।
#11. गर्भ का स्त्री वा पुरुष लिंग परिवर्तन करना याने
#12. पविष्टक के प्रकार आचार्य ने वर्णन किये है।
#13. मूढगर्भ के शिर विदारण के लिये शस्त्र प्रयोग करे।
#14. लकुचाकृति पायी जाती है। भा. प्र.
#15. वाग्भट ने पूर्णवीर्यता आयु वर्णन की है स्त्री पुरुष क्रमश:
#16. स्फोटाश्च तीव्रजायन्ते लिंगपाको भवत्यपि’ क्लैब्य है।
#17. गर्भसंग व गर्भ का मूढ होना प्रकार का है। क्र.
#18. चरकानुसार श्रोणिफलकास्थि है।
#19. वाग्भट ने हृदयमोक्ष यह अवस्था ….. में बताई।
#20. विष्कंभ मूढगर्भ चिकित्सार्थ होता है।
#21. क्षामप्रसन्नवदना’ इस अवस्था में स्त्री लक्षण
#22. अगर आप के विचार से गर्भाशय में सर्वप्रथम इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है तो आप इस आचार्य के मत से साधर्म्य रखते हो।
#23. प्रविध्यति शिरो’……स्त्री लक्षण है।
#24. गर्भपात का हेतु है ।
#25. योनि में पेशी की संख्या होती है।
#26. गर्भिणी उदावर्त में इस अवस्था में बस्ति देना चाहिए।
#27. गर्भिणी स्त्री का दक्षिण अक्षि महत्त्व होनेपर गर्भ लिंग होता है ।
#28. लक्षण और विकार में योग्य मिलाप करें। 1. गर्भवृद्धि न प्राप्नोति 2. स मातुः कुक्षि पूरयति मन्दं स्पन्दते 3. गर्भवृद्धि न प्राप्नोति परशुष्कत्त्वात 4. गर्भ प्रसृप्तो न स्पंदते >> a) शुष्यति गर्भ b) उपशुष्कक d) लीनगर्भ c) नागोदर
#29. गर्भ शोणित से हृदय उत्पत्ति व हृदय से ….. । काश्यप
#30. कफज स्तन्यदोष के इस गुण से हृद्रोग होता है।
#31. नाभि सर्वप्रथम उत्पन्न होती है। सुश्रुत
#32. हारीतनुसार घनक्षीर में कारण दोष कौनसा है।
#33. भोजनोपरान्त तुरन्त व्यवाय… योनिव्यापद का हेतु है।
#34. स्तन्य का प्रादुर्भाव हेतु है।
#35. संग्रहकारनुसार मूढगर्भ की गति है ।
#36. आभुग्न अभिमुख’ यह गर्भ का आसन वर्णन किया।
#37. Fishy smell discharge of purperium is called as
#38. संग्रहाकारानुसारं मूढगर्भ की गतियाँ है ।
#39. कटिपृष्ठप्रतिसमन्ताद् वेदना | प्रसव अवस्था है।
#40. Weight of placenta is
#41. गर्भदं परं…….. घृत संबधी वर्णन है।
#42. स्त्रिणा गर्भाशय….। सु.शा. 5/8
#43. कृष्णश्याम वर्ण में तेज के साथ यह महाभूत है। सुश्रुत
#44. Principle oestrogen secreted by ovary is
#45. Posterior wall of vagina measures about
#46. पार्श्वद्वयउन्नतत्कुक्षौ द्रोण्यामिव’ लक्षण है।
#47. सुश्रुताचार्यानुसार प्रसव के कारण है।
#48. रजस्वला काल में निषेध है।
#49. अष्टममास में क्षीर यवागू पानार्थ निषेध किया ।
#50. ………पुरुष विद्यात रसं रक्षेत् प्रयत्नत्: ।
#51. Common position of foetus in uterus is
#52. Development of placenta takes place chiefly by
#53. Green colour of amniotic fluid suggests the
#54. मातृपृष्ठाभिमुख…. संकुच्याऽन्यास्तेऽन्तकुक्षौ । स्वाभाविक स्थिति है।
#55. Common cause of purpural sepsis is
#56. शुक्रदोष चिकित्सार्थ कफ आधीक्य हो तो प्रयोग न करें।
#57. वरण बंध का प्रयोग आचार्य ने माना है
#58. ……. स्तनयो: तासा यौवने परिवृद्धि । पेशियाँ है ।
#59. षष्ठे मासी गर्भस्य…. उपचंय भवति ।
#60. …….सर्पिः पृथकपर्ण्यादि सिद्धम। सुश्रुत
#61. मूढगर्भ की मंथरक गति का वर्णन किया ।
#62. गुल्म चिकित्सा में प्रधानतः से इसका विचार करें।
#63. नष्टार्तव होने वाली स्त्री को कहते है ।
#64. बालवेण्या कण्ठतालु परिमृशेत प्रसव की इस अवस्था में करना चाहिए। चरक
#65. Among the 4 degree of placenta praevia which one is called as dangerous placenta praevia
#66. कुक्षीश्च वृद्धाऽपि परिहीयते । गर्भव्यापद है।
#67. प्रविष्टमात्रं बीजं हि रक्तेन परिवेष्टते। संदर्भ
#68. नंष्टार्तव में पाया जाता है।
#69. बालक का शुक्र……गुण के कारण अदृश्य होता है।
#70. धरा’ पर्यायी नाम है। शां
#71. संरक्ष्यतेऽभिघातेभ्यः कुक्कुट्यण्डमिवागता…. संबंधी वर्णन आया है ।
#72. मुक’ बालक को…. इस गर्भोपघातक भाव स्वरूप प्राप्त ‘ होता है।
#73. प्रसिच्यते योनिश्लेष्माश्च ।’ लक्षण है।
#74. Bleeding on touch is charecter of
#75. Blood losses during PPH is
#76. This episiotomy is commonly used
#77. इस व्याधि में स्वयोनिवर्धन द्रव्य प्रयुक्त करे।
#78. स्त्री में स्तनरोग के हेतु एवं संख्या इस व्याधि के समान है।
#79. प्रसन्न विमल शीत निर्गन्धी स्राव है।
#80. अतिभोजन कर व्यवाय करने से उत्पन्न योनिव्यापद है।
#81. Fallopion tube at uterine opening measure
#82. निम्नउपविष्टक में प्रथमतः सैंधव क्षीरबस्ति चिकित्सा देते है ।
#83. सदाह प्रक्षरत्यस्त्र… योनिव्यापद है।
#84. सुतिका स्त्रीस प्रथम 3-5 दिन में अग्निबल का विचार कर मण्ड……साथ में लेना चाहिए।
#85. ‘छर्दि निश्वास निग्रहात ‘….. योनिव्यापद का प्रमुख हेतु है
#86. मण्डल आकार योनि का परिणाम होता है।
#87. आघप्रसवा, उपस्थित प्रसवा यह प्रसव की अवस्थाएं इस आचार्य ने वर्णन की है।
#88. गर्भिणी परिचर्या में कदम्बमाषतैल ने बताया
#89. इस रस का अधिक सेवन से उदावर्त व्याधि होता है।
#90. Common cause of Aborition in 2nd trimesters is
#91. वृद्धिमप्राप्नुवन् गर्भः कोष्ठे तिष्ठति सस्फुरः । अ.हृ.
#92. द्रोणीभुतउदरं लक्षण से… गर्भ अनुमान करें । सुश्रुत
#93. आयम्यते ….. हृदयं तुद्यते तथा । . हृद्रोग लक्षण है।
#94. गर्भिणी परिचर्या में तृतीय महिने में क्षीर…. साथ में लेना चाहिए। ( चरक )
#95. प्रसुवोत्सुका एवं आसन्नप्रसवा प्रसव की अवस्था मानी है।
#96. Purperium is period measures about approx
#97. समन्तादाध्मानमुदरेमूत्रसंग लक्षण है।
#98. गोपित्त व मत्लपित्त का चिकित्सार्थ प्रयोग होता है।
#99. In Torch-R – stands for
#100. नहि… दृते योनिर्नारीणा सम्प्रदुषायन्ति ।
Results



