PTSR MCQ set – 2
#1. स्त्री शरीर में कुल पेशियाँ होती
#2. उपप्लुता योनिव्यापद में दोषप्राधान्य होता है।
#3. योग्य जोडियाँ लगाएं। a. शंखनाभ्याकृति b. रोहितमस्यमुखाकृति c. पिप्पलाकृति d. कलशाकृति i. गर्भाशय ii. स्मरातपत्र iii. योनि iv. स्तन
#4. हारीतनुसार दुष्टी ज्वर का प्रमुख कारण है।
#5. Purperium is period measures about approx
#6. काश्यपानुसार रजकाल में नस्य सेवन से परिणाम होता है।
#7. Zioयतकष्टममस्ति यथा मूढगर्भ शल्योध्दरणम्…. । संदर्भ
#8. ग्रंथीभूत आर्तव दोष प्रधान है।
#9. क्लमोगात्राणां ग्लानीरआननस्य अक्ष्णो शौथिल्य…..लक्षण प्रसव अवस्था के है।
#10. अतिसार’ लक्षण…. दोषयुक्त स्तन्यपान से होता है।
#11. उदुखल मुंसले न भिहन्या’ विशेषता इस अवस्था में करें।
#12. चरकाचार्य के नुसार अरजस्का योनि दोष प्रधान है।
#13. Lactational amennorrhoea is of…. in breast feeding mother.
#14. स्त्रिणा गर्भाशय…..। सु.शा. 5/8
#15. L.S.C.S. is of common type
#16. असत्य विधान चूनिए । 1. काश्यप के मतानुसार योनिव्यापद में मण्ड निषेध है । 2. आचार्य भेल के मतानुसार शुक्र दोष 7 है। 3. उदुम्बर तैल कफज योनिव्यापद की चिकित्सा है। 4. आचार्य हारीत ने मूढगर्भ की मन्थर गति बताई है। 5. संग्रह ने दौहृदय उत्पत्ति 5 वे मास में बताई है। 6. शारंगधर ने स्त्री शुक्र एवं आर्तव को अष्टम धातु माना है।
#17. सर्वधातुकुलुषीकृत’ गर्भ का वर्णन इस मास का है।
#18. Breadth, length and thickness of ovary is…..respectively.
#19. इस वात प्रकार के कारण स्तन से स्तन्य का स्रवण होता है।
#20. चरकनुसार मातृजादि रसज भाव है।
#21. वैरस्य स्तन्य दोष यह दोष प्रधान रहता है।
#22. सुश्रुतनुसार गर्भ में गौर वर्ण का कारण है।
#23. रक्तप्रदर के कारण और क्षीरदोष सामान्य कारण समान होते है।
#24. सर्वाग सम्पुण भावैः पुष्यति’ इस मास का वर्णन है।
#25. निःसृतहस्तपादशिरा : कायसंगी….. मूढगर्भ प्रकार है।
#26. प्रसुवोत्सुका एवं आसन्नप्रसवा प्रसव की अवस्था मानी है।
#27. संकुच्याऽगान्यास्तेऽन्तः कुक्षौ । गर्भाशय में गर्भस्थिति……ने वर्णन की ।
#28. गर्भिणी को गवा मांस सेवन इच्छा होने पर गर्भ… होता है।
#29. Fishy smell discharge of purperium is called as
#30. पुत्रघ्नी योनिव्यापद दोष प्रधान है। सुश्रुत
#31. ‘शुक्र मंड समान रहने पर गर्भ का वर्ण होता है।
#32. योन्यार्श’ का वर्णन इस आचार्य ने किया है।
#33. निम्न में से शुद्ध स्तन्य लक्षण है।
#34. वाग्भट ने योनिव्यापद का वर्णन इस अध्याय में किया है।
#35. नष्टार्तवा स्त्री को सुश्रुत ने कहा है।
#36. रस रत्न समुच्चय नुसार वंध्या के भेद है।
#37. This episiotomy is commonly used
#38. शुक्र शोणित गर्भाशयस्य आत्म प्रकृति विकार समुर्च्छित । संदर्भ
#39. गौरी नाडीपर वीर्यपात का फल है।
#40. इस आचार्यनुसार सूतिकाकाल 6 मास तक रहता है।
#41. निम्नतः शुक्र का दोष नहीं है।
#42. असृग्दर व्याधि में चिकित्सा करे ।
#43. उदावर्त योनिव्यापद लक्षण तुल्य है।
#44. इस गर्भोदक विकृति से प्रसव बाद बालक में ओष्टभंग,पादवक्रता, विकृत यमगर्भ दिखता है।
#45. परिहियमानात एव न स्फुरति न च कुक्षिविवर्धते ।
#46. शूल अधिकम् न आवि न प्रस्त्रवति । लक्षण है।
#47. संकीलक मूढगर्भं का वर्णन… आचार्य ने किया।
#48. नच आवी’ इस गर्भोपद्रव के लक्षण है।
#49. पिस से दूषित स्तन्य दोष है।
#50. गर्भशल्यहरण में प्रथम कर्म करें।
#51. तृष्णालु भिन्न विट शिशुः । नित्यमुष्ण शारीरश्च… स्तन्यदोष सेवन का दुष्प्रभाव है।
#52. लांगलीमुल का प्रयोग करते है।
#53. योनिकंद के प्रकार है।
#54. निम्न में गर्भस्थापक द्रव्य नहीं है।
#55. …….चिकित्सार्थ शतपाक तेल का प्रयोग करना चाहिए।
#56. चरक नुसार गर्भिणी को पंचम मांस में प्रयोग करना है।
#57. क्षामप्रसन्नवदना’ इस अवस्था में स्त्री लक्षण
#58. डल्हणनुसार आमंगर्भपात इस माह तक होता है।
#59. जले चाप्यव सीदति… दोष प्रधान स्तन्य है।
#60. योगरत्नाकरनुसार आठवे महिने में गर्भ चलन होने पर स्तंभनार्थ……प्रयोग करना चाहिए।
#61. चरतो विश्वरूपस्य रुपद्रव्यं यदुच्यते’ इससे संबंधित है।
#62. संग्रहकार नुसार दौहृदयनी अवस्था मांस में है ।
#63. अष्टम मांस में देय आस्थापन बस्ति का उद्देश है।
#64. मातृपृष्ठाभिमुख…. संकुच्याऽन्यास्तेऽन्तकुक्षौ । स्वाभाविक स्थिति है।
#65. मातुस्तु खलु नाड्यां गर्भनाभि नाडी प्रतिबद्धाः
#66. Blastocyst implanted on …….day
#67. …….is the surgical management of tubal pregnancy.
#68. रजस्वला स्त्री को विशेष व्याधि होता है।
#69. स्थिरत्वं आपघते गर्भ. …. मांस का वर्णन है।
#70. Drug of choice in the t/t of eclempsia
#71. Most common malignant ovarian tumour of pregnancy
#72. मध्य निबडा योनि …. होती है।
#73. मक्कल व्याधि का उपद्रव है।
#74. भवत्यऽस्पंदनो गर्भः । चरक
#75. गर्भसंग व गर्भ का मूढ होना प्रकार का है। क्र.
#76. बालक का शुक्र……गुण के कारण अदृश्य होता है।
#77. चरकाचार्य नुसार सूतिकागार का द्वार दिशा में होना चाहिये ।
#78. गर्भोनिर्गमे… प्रवाहण करने का उद्देश किया है।
#79. अधावनात मेंढ्रस्य….. क्लैब्य हेतु है ।
#80. गर्भोवृद्धि न प्राप्नोति परिशुष्कवात (च)
#81. If length of umbilical cord is less than …. cma is called as short cord
#82. मूढगर्भ की गतियाँ है ।
#83. पुष्यानुग चूर्ण में चरक संहिता में… के जगह पाठ है।
#84. ..स्फुरणं चिरात । वाग्भट
#85. निम्नतः व्याधि चिकित्सा में औषधि, शस्त्र, क्षार, अग्निप्रयोग करें।
#86. आचार्य हारीत और भेल के नुसार रजकाल होता है।
#87. परिशुष्ककत्वात सचापि कालम अवतिष्ठते ।
#88. षष्ठे मासी गर्भस्य…. उपचंय भवति ।
#89. Master cells of ovary is
#90. तासा यौवने परिवृद्धिर्भवति । का वर्णन है।
#91. परिवृत्यावाक्रशिरा’ गर्भस्थिति……..कालीन है।
#92. सुश्रुताचार्य ने ‘उदुखलात धान्य कुट्टन’ यह उपक्रम चिकित्सार्थ प्रयोग किया।
#93. ……..नुसार पुसंवनार्थ कुड्यकीटक का उपयोग करना चाहिए।
#94. मातृदोष से उत्पन्न होनेवाली योनि प्रकार है ।
#95. Functional closure of foramen oval at
#96. मूत्रपुरीष गंधी आर्तव दोष प्रधान है।
#97. डल्हणनुसार स्त्री श्रोणि का अंगुली प्रमाण है।
#98. Is the warning sign of toximia if weight gain is
#99. Dusky hue of vestibule, anterior vaginal wall presents at
#100. प्राकृत प्रसव का काल है।
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