Padarth Vijnanam Set – 5
#1. शारीरगुण है ।
#2. उपनिषद् में इसको अन्नमय कहा गया है।
#3. अयुतसिद्ध संबंध अर्थात् ……….।
#4. अंतःकरण अर्थात् ……….. ।
#5. प्रमाण के पर्याय हैं।
#6. हाथ में ध्वज लेकर है वह नेता है’ यह इस लक्षण का उदाहरण है ।
#7. तर्कसंग्रह ग्रंथ के रचयिता है।
#8. पुरुष निम्न में से है ।
#9. प्रमाणों से सिद्ध न किया गया किंतु अस्थायी रूप से ग्राह्य तत्कालीन स्विकारीत सिद्धांत होता है ।
#10. हेतु का पक्षपर रहना’ निम्न में से है ।
#11. परिमिता का वर्णन इस दर्शन में आया है ।
#12. निम्न में से यह मन का प्रधान कर्म है ।
#13. अधिकरण अवयव कितने है ।
#14. यथार्थ अनुभवः ।
#15. अष्टांगसंग्रह के अनुसार तंत्रयुक्ति है ।
#16. अतीतादि व्यवहार हेतुः –1 (तर्कसंग्रह)
#17. यस्य शमने शक्तिः स – 1 (भा.प्र.)
#18. मूर्त गुण कितने है ?
#19. सुश्रुत के अनुसार निम्न में से यह तंत्रयुक्ति नहीं है ।
#20. निम्न में से यह पश्चिम दिशा की देवता है ।
#21. . पृथ्वी में गुण संख्या है।
#22. माध्यमिक मत इस बौद्ध संप्रदाय को कहते है ।
#23. बार्हस्पत्य ये इस दर्शन के रचयिता है।
#24. पदानाम् अविलम्बेन उच्चारणं । (तर्कसंग्रह)
#25. जरणशक्ति से अग्नि का परीक्षण इस प्रमाण द्वारा किया जाता है।
#26. इस दर्शन को उत्तरमीमांसा या ज्ञानमीमांसा भी कहते है ।
#27. व्याघात’ निम्न में से इसका प्रकार है ।
#28. ज्ञान विज्ञान चचन प्रतिवचन शक्ति संपन्न है।
#29. वस्य द्रव्यस्थ विवरणे शक्तिः स ……
#30. परिणामवाद इस दर्शन का है ।
#31. चक्रपाणि ने इन गुणों को चिकित्सोपयोगी गुण कहा है।
#32. सर्वव्यवहार हेतुः ज्ञानं … ।
#33. पदार्थधर्मसंग्रह’ इस ग्रंथपर श्रीवत्स द्वारा टीका है ।
#34. चरक के नुसार अहेतु है ।
#35. कारणद्रव्य कितनी है ? (चरक)
#36. पंचावयव वाक्यों में ‘साध्य साधन’ अर्थात् …………..।
#37. इंद्र देवता की दिशा है ।
#38. आद्यपतनस्य असमवायी कारणं….।
#39. अर्थोपलब्धि हेतु – । (न्यायवार्तिक)
#40. प्रकृति – पुरुष में वैधर्म्य है।
#41. जैनदर्शनोक्त अजीव सृष्टी के प्रकार है ।
#42. उपमान के प्रकार है।
#43. किसी कारण बिना आकस्मिक घटना का घटजाना अर्थात् ।
#44. पाणि’ इस कर्मेन्द्रिय का महाभूत है ।
#45. ‘पुनर्जन्म सिद्धि’ का वर्णन चरक संहिता के सूत्रस्थान इस अध्याय में आया है ।
#46. संस्कारमात्रजन्यं ज्ञानं ….।
#47. : वायु महाभुत का स्पर्श है ।
#48. योगदर्शन निम्न में से इस वाद से सम्मत है।
#49. तात्पर्य टीका ग्रंथ इस दर्शन से संबंधित है ।
#50. अजातवाद किसने बताया ?
#51. बुद्धिः पश्यति या भावान् बहुकारण योगजान् । यह इस प्रमाण का सूत्र है ।
#52. तैतरीय उपनिषद के अनुसार जल महाभूत की उत्पत्ति इससे हुई है ।
#53. त्रिगुणों के परस्पर संबंधों का स्पष्टिकरण निम्न में से इसके द्वारा किया है ।
#54. निम्न में से ये गुण चिकित्सा सिद्धि के उपाय है ।
#55. कारण भेद से शब्द के प्रकार है ।
#56. बौद्धदर्शन में ……… प्रमाण वर्णित है ।
#57. लौकिक कर्म के प्रकार है ।
#58. कणोपनिषद के अनुसार ‘मन’ यह जीवनरथ का है |
#59. मनोव्याकरणात्मकम् | यह मन का लक्षण – ने बताया है।
#60. कर्तृकारणसंयोगात क्रिया’ इस प्रमाण का लक्षण है ।
#61. आत्मा को इस अवस्था में ज्ञान होता है ।
#62. त्रिवर्ग में नहीं आता है।
#63. आयुर्वेद में कुल कितने गुण बताये है ?
#64. ‘ऐतिह्य’ प्रमाण निम्न में से कौनसा प्रमाण है ?
#65. जलकर्षण बीतर्जुसंयोगात् सस्यसंभवः । यह इस प्रमाण का उदाहरण है ।
#66. यह अधिकरण का प्रकार नहीं है।
#67. न्यायदर्शन के अनुसार निग्रहस्थान कुल कितने है ?
#68. निम्न में से ‘अलिंग’ क्या है ?
#69. प्रमेय के कुल प्रकार हैं।
#70. औलूक्य दर्शन कहलाता है।
#71. आत्मा को अतिवाहिक पुरुष किसने कहा हैं ।
#72. अनुवृत्ति प्रत्यय हेतु ……. । (तर्कभाषा)
#73. इन्द्रियों को भौतिक माना है।
#74. परत्व अपरत्व का संबंध निम्न में से इससे रहता है ।
#75. वेदांत की प्रस्थानत्रयी में … का समावेश नहीं है।
#76. कौटिलीय के अनुसार तंत्रयुक्ति है ।
#77. धर्मजन्म अनुकूलवेदनीयं गुणः सुखम् । इस सूत्र को किसने कहा है ?
#78. द्वेष इस गुण का लक्षण है ।
#79. मांसमाप्यायते मांसेन। यह इस सामान्य का प्रकार है ।
#80. नाभिस्थान में उत्पन्न होनेवाली वाणी हे ।
#81. अक्रियावादी दर्शन कितने है ।
#82. निष्क्रमण, प्रवेशन ये इस महाभूत के गुण है ।
#83. लक्षणदोष नहीं है।
#84. न्यायदर्शन के अनुसार हेत्वाभास के प्रकार है ।
#85. इंद्रिय द्रव्य है।
#86. निम्न में से पंचमहाभूत का समावेश है ।
#87. सादृश्यधर्म विशिष्ट यह इस प्रमाण का प्रकार है ।
#88. भट्टार हरिश्चंद्र के अनुसार अर्थाश्रय है ।
#89. इस अनुमान से गर्भधारणा से मैथुन का ज्ञान होता है ।
#90. निम्न में से यह प्राणेन्द्रिय का विषम है ।
#91. तर्कसंग्रह के अनुसार कारण के प्रकार है ।
#92. अरुणदत्त के अनुसार सप्तविध कल्पना के आश्रय है ।
#93. पद के प्रकार है ।
#94. संदिग्ध साध्यवान..
#95. आत्मा के अस्तित्व की उपलब्धि इस प्रमाण से होती है ।
#96. श्रोत्रेन्द्रिय का द्रव्य है ।
#97. त्रिपीटक’ ये इस दर्शन की प्रमुख ग्रंथसंपदा है ।
#98. येन अनुमियते तद् अनुमानम् । इस सूत्र का संदर्भ है ।
#99. चेष्टा प्रमाण का समावेश इस प्रमाण में होता है ।
#100. पौराणिकों ने प्रमाण माने है ।
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