Padarth Vijnanam Set – 4
#1. सर्वव्यवहार हेतुः ज्ञानं . । (त.सं.)
#2. या कलनात् सर्व भूतानां स कालः परिकीर्तितः । संदर्भ ?
#3. वैशेषिकोक्त प्रथम पदार्थ है ।
#4. बौद्ध दर्शन के अनुसार द्रव्य है।
#5. अयुतसिद्ध संबंध अर्थात् ……….।
#6. अनन्यथासिद्ध कार्य नियतपूर्ववत्तिः । (तर्कसंग्रह)
#7. आदान’ यह इस कर्मेन्द्रिय का कर्म है।
#8. तर्कसंग्रह के अनुसार वाक्यार्थ ज्ञान हेतु है ।
#9. केवल अद्वैतवाद इस आचार्य ने बताया है ।
#10. प्रल्हादकराणि यह इस द्रव्य का कर्म है।
#11. प्रवाल और मुक्ता ये इस गुण के उदाहरण है ।
#12. .. सा या विक्रियमाण कार्यत्वम् अपद्यते ।
#13. सुश्रुतानुसार पदार्थ संख्या है।
#14. अतिवाहिक पुरुष का वर्णन …….. इस आचार्य ने किया है
#15. आद्यपतनस्य असमवायि कारणं …।
#16. निम्न में से यह उभय (मूर्त व अमूर्त) गुण है ।
#17. नाम यत् प्रतिज्ञातार्थ साधनास हेतुवचनम् ।
#18. नयवाद के प्रवर्तक है ।
#19. आद्यपतनस्य असमवायी कारणं….।
#20. शून्यवाद का प्रथम प्रवर्तक निम्न में से है।
#21. मायावाद/विवर्तबाद… दर्शन ने बताया है ।
#22. . हेतुसाध्ययोः अविनाभाव संबंध …।
#23. अचेतन द्रव्यों में होनेवाली हलचल . … यह कर्म है ।
#24. न्यायदर्शन के रचयिता है।
#25. मूल प्रकृति की संख्या है।
#26. वैशेषिक दर्शन के टीकाकार है।
#27. प्रत्यक्ष प्रमाण किसने बताया है ।
#28. वाक्यदोष कितने है ?
#29. “हरीतकी बीज से हरीतकी की उत्पत्ति” यह इसका उदाहरण है।
#30. असमवायीकारण है।
#31. तर्कसंग्रह के अनुसार स्मृति के प्रकार है ।
#32. यह मूर्त द्रव्य नहीं है ।
#33. प्रशस्तपाद के अनुसार परत्व के भेद है।
#34. न्यायदर्शनकार के अनुसार प्रमेय है ।
#35. सुश्रुतोक्त तंत्रयुक्तियाँ कितनी है ?
#36. यह अधिकरण का प्रकार नहीं है।
#37. पदार्थधर्मसंग्रह ग्रंथ पर श्रीधराचार्यकी टिका है ।
#38. निम्न में से इसका समावेश पंचक्लेशों में नहीं होता ।
#39. जाठराग्नि अर्थात् ……… ।
#40. इंद्रिय के लक्षण पाणिनी सूत्र में — अर्थों से युक्त है।
#41. पंचतन्मात्राओं की उत्पत्ति इस अहंकार से हुई है।
#42. हेतु के मुख्य प्रकार है ।
#43. गाय के जैसी वनगाय’ अर्थात् … उपमान है ।
#44. उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है ।
#45. प्रमाण के पर्याय हैं।
#46. चार्वाक ने प्रमाण बताये है ।
#47. एकधातु पुरूष है।
#48. केवल अद्वैतवाद कौनसे आचार्य ने बताया हैं?
#49. ‘वृक्ष पर पक्षी का बैठना’ यह इस संयोग प्रकार का उदा. है ।
#50. चरक के नुसार अहेतु है ।
#51. प्रत्यक्षप्रमाण इस दर्शन ने माना है।
#52. तर्कोअनिष्ट प्रसंग: । यह व्याख्या – इस ग्रंथ में वर्णित है। +
#53. पौराणिकों ने प्रमाण माने है ।
#54. जिज्ञासा नाम ….
#55. स्वप्न के प्रकार है ।
#56. सामान्य गुण कितने है?
#57. प्रतीची दिशा की देवता …….. है।
#58. अनेकांतवाद’ ……… दर्शन में वर्णित है।
#59. मृत्यु को मोक्ष और काम को पुरुषार्थ इस दर्शन ने माना है।
#60. आनन्द’ यह कर्म इस इन्द्रिय का है ।
#61. अनैकांतिक हेत्वाभास अर्थात् … हेत्वाभास है ।
#62. नवन्याय’ इस सम्प्रदाय की शुरुवात ……. ने की।
#63. जैन दर्शनोक्त व्रत कितने है ।
#64. ज्ञानवती और मुढवती इसके प्रकार है ।
#65. हेत्वाभास का प्रकार है।
#66. पंचावयव वाक्य का प्रयोग होता है।
#67. . राशिपुरुष कितने तत्त्वात्मक होता है ?
#68. मन के गुण है।
#69. भट्टारहरिश्चन्द्र ने सामान्य के भेद माने हैं-
#70. अधर्मजन्यम् प्रतिकूलवेदनीयं…. । (प्रशस्तपाद)
#71. पृथ्वी महाभूत के प्रशस्तपादोक्त गुण है ।
#72. शब्द का प्रसारण इस न्याय से होता है ।
#73. शुक्लभास्वर इस महाभूत का गुण है ।
#74. . क्रियागुणवत् समवायिकारणामिति लक्षणम्। (वैशेषिक द.)
#75. भट्टारहरिश्चंद्र के अनुसार सामान्य के प्रकार है ।
#76. तर्कसंग्रह पर अन्नभट्ट की टीका है ।
#77. सजातीयभ्यो व्यावर्तनं — 1 (वामनाचार्य)
#78. ब्रह्मसूत्रों की रचना की है।
#79. स्मृति के कारण है ।
#80. सत्त्वरजो बतुलो ।
#81. प्रशस्तपादोक्त अतिरिक्त 7 गुणों में यह गुण है ।
#82. जैनदर्शनोक्त अजीव सृष्टी के प्रकार है ।
#83. पृथ्वी महाभूत में कितने प्रकार का रूप रहता है ।
#84. अंतःकरण चतुष्टय में इसका समावेश नहीं होता ।
#85. हाथ में ध्वज लेकर है वह नेता है’ यह इस लक्षण का उदाहरण है ।
#86. ज्ञानाधिकरणम्
#87. यह पदार्थ आयुर्वेद को अमान्य है ।
#88. पीलुपाकबाद किसने बताया ?
#89. किसी एक वस्तु का एकदेश ज्ञान न होकर समग्र स्वरूप का ज्ञान न होना ………… प्रमाण है ।
#90. आत्मा को इस अवस्था में ज्ञान होता है ।
#91. सिद्धांत के प्रकार है।
#92. सामान्य गुणों की संख्या है ।
#93. वायु महाभूत की उत्पत्ति इस तन्मात्रा से होती है ।
#94. पद के प्रकार है ।
#95. काव्यशास्त्र सम्मत प्रमाणों की संख्या है।
#96. कुमारील भट्ट के अनुसार प्रमाण है ?
#97. बर्फ (हिम) को स्पर्श किये बिना उसकी शीतलता का ज्ञान होना — यह लक्षण है ।
#98. त्रिकालिक ज्ञान निम्न में से प्राप्त होता है।
#99. ‘अवाची’ यह इस दिशा का नाम है ।
#100. अनुमान परिक्षा-विज्ञानं (चरक)
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