Padarth Vijnanam Set – 3
#1. शुण्ठी, पद के किस प्रकार में आयेगा।
#2. . राशिपुरुष कितने तत्त्वात्मक होता है ?
#3. पदार्थधर्मसंग्रह’ इस ग्रंथपर श्रीवत्स द्वारा टीका है ।
#4. आत्मा के अस्तित्व की उपलब्धि इस प्रमाण से होती है ।
#5. रत्नत्रय निम्न में से इस दर्शन ने बताये है।
#6. योगदर्शन ने सांख्यदर्शन से यह तत्त्व अधिक माना है।
#7. संघातवाद किसने बताया ?
#8. नाम विचारितस्यार्थस्य व्यवस्थापनम् । (चक्रपाणि)
#9. यह मूर्तद्रव्य नहीं है ।
#10. यो अर्थः प्रमियते तत् –
#11. चरक नुसार हस्त इस कर्मेन्द्रिय का कार्य है ।
#12. प्रशस्तपादोक्त काल के गुण है।
#13. यह तंत्रयुक्ति का प्रयोजन है ।
#14. सुश्रुत के अनुसार निम्न में से यह तंत्रयुक्ति नहीं है ।
#15. चरक के नुसार अहेतु है ।
#16. प्रल्हादकराणि यह इस द्रव्य का कर्म है।
#17. यह पदार्थ आयुर्वेद को अमान्य है ।
#18. जरणशक्ति से अग्नि का परीक्षण इस प्रमाण द्वारा किया जाता है।
#19. इस का समावेश सप्तदश ताच्छील्यादि प्रकारों में नहीं होता।
#20. द्वैपायन इस दर्शन के कर्ता है ।
#21. पूर्वमीमांसा’ दर्शन के रचयिता है ।
#22. न्यायदर्शन के अनुसार हेत्वाभास के प्रकार है ।
#23. निम्न में से इसका समावेश परमपदार्थ में होता है ।
#24. चरकाचार्य ने कार्यकारणभाव के कितने मुझे बताये है ।
#25. आद्यपतनस्य असमवायी कारणं….।
#26. कार्य रूप वायु महाभूत का परिणाम है ।
#27. प्रभाकर के अनुसार प्रमाण कितने है ?
#28. पूर्वमीमांसा दर्शनोक्त द्रव्य कितने है ?
#29. योगज प्रत्यक्ष इस प्रत्यक्ष का प्रकार है।
#30. पदानाम् अविलम्बेन उच्चारणं । (तर्कसंग्रह)
#31. लौकिक कर्म के प्रकार है ।
#32. तेज महाभूत का रूप है ।
#33. वैभाषिक सम्प्रदाय……..से संबंधित है ।
#34. पुष्पफलवंतो वृक्षाः । यह सूत्र निम्न में से इसका है।
#35. चेष्टा प्रमाण का समावेश इस प्रमाण में होता है ।
#36. मिथ्य आहारविहार रोग का ……… कारण है।
#37. चरकाचार्य नुसार ‘विशेषस्तु पृथकत्वकृत्’ अर्थात् है ।
#38. ब्द की शब्दत्व यह जाती श्रोता को इस सन्निकर्ष से मझती है।
#39. षड्कारणवाद’ में इसका समावेश नहीं होता ।
#40. त्रिपीटक’ ये इस दर्शन की प्रमुख ग्रंथसंपदा है ।
#41. अचेतन द्रव्यों में होनेवाली हलचल . … यह कर्म है ।
#42. सजातीयभ्यो व्यावर्तनं — 1 (वामनाचार्य)
#43. ज्ञान विज्ञान चचन प्रतिवचन शक्ति संपन्न है।
#44. पुण्य, पाप ये जैन दर्शनोक्त ……..है।
#45. जडबाद – दर्शनसम्मत है।
#46. ‘उपस्थ’ की देवता है ।
#47. उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है ।
#48. अनन्यथासिद्ध कार्य नियतपूर्ववत्तिः । (तर्कसंग्रह)
#49. उर्ध्वगति इस तेज की होती है ।
#50. . क्रियागुणवत् समवायिकारणामिति लक्षणम्। (वैशेषिक द.)
#51. ऐतिह्य प्रमाण अर्थात….. प्रमाण
#52. त्रिविध अंतःकरण में इसका समावेश नहीं होता ।
#53. धातुवैषम्य अर्थात् 1
#54. कणाद ने यह गुण नहीं बताया । ने
#55. देह की कर्मशक्ति को बांधनेवाला गुण कौनसा है ?
#56. निम्न में से यह पश्चिम दिशा की देवता है ।
#57. चरकानुसार शब्द के प्रकार है।
#58. भगवान बुद्ध की अव्याकृते है ।
#59. कर्तृकारणसंयोगात क्रिया’ इस प्रमाण का लक्षण है ।
#60. वादमार्ग ज्ञानार्थ पद (शास्त्रार्थ उपयोगी पद) है ।
#61. अंतःकरण चतुष्टय में इसका समावेश नहीं होता ।
#62. अविद्या के प्रकार है ।
#63. वाक्यदोष कितने है ?
#64. कौटिलीय के अनुसार तंत्रयुक्ति है ।
#65. ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या’ इस तत्त्वपर आधारित यह दर्शन है ।
#66. अतिवाहिक पुरुष का वर्णन …….. इस आचार्य ने किया है
#67. कर्मनीयतीवाद इस दर्शन ने बताया है ।
#68. कारणभेद से संभाषा के प्रकार है ।
#69. एकं द्रव्यं अगुणं संयोगविभागंषु अनपेक्षकारम् इति
#70. ज्योतिष्य शास्त्र के अनुसार विद्युत के प्रकार है ।
#71. जहां हेतु रहता है वहां साध्य होता है । यह अनुमान है।
#72. मैं गुंगा हुँ’ ऐसा बोलकर बताना यह कौनसा तर्कप्रकार है।
#73. धूम को देखकर गुढरूपी अग्नि का अनुमान करना’ यह इस अनुमान का उदाहरण है ।
#74. तर्कसंग्रह के अनुसार वाक्यार्थ ज्ञान हेतु है ।
#75. आन्विक्षिकी विद्या के प्रवर्तक है ।
#76. मन के गुण कितने है?
#77. पौराणिकों ने प्रमाण माने है ।
#78. इस अनुमान से गर्भधारणा से मैथुन का ज्ञान होता है ।
#79. अभावप्रत्ययालम्बना वृत्तिः …..
#80. तैजस और वैकारिक अहंकार से इसकी उत्पत्ति हुई है ।
#81. अतीतादि व्यवहार हेतुः –1 (तर्कसंग्रह)
#82. यह मूर्त द्रव्य नहीं है ।
#83. यह विष्णुवाची पद है ।
#84. अग्नि का नैमित्तिक गुण है।
#85. जैनदर्शनोक्त अजीव सृष्टी के प्रकार है ।
#86. “हरीतकी बीज से हरीतकी की उत्पत्ति” यह इसका उदाहरण है।
#87. निम्न में से यह मन का प्रधान कर्म है ।
#88. सिद्धांत के प्रकार है।
#89. भावप्रकाश के अनुसार स्त्रोतसामवरोधकृत यह गुण होता है।
#90. सांख्य दर्शनकार हैं।
#91. पंचतन्मात्राओंकी उत्पत्ति इस अहंकार से हुई है ।
#92. अपरिमिताश्चपदार्थाः। यह सूत्र इस आचार्य ने कहा है 1?
#93. ‘पुनर्जन्म सिद्धि’ का वर्णन चरक संहिता के सूत्रस्थान इस अध्याय में आया है ।
#94. आचार्य सुश्रुत ने आप्तोपदेश प्रमाण को कहा है।
#95. नैयायिक प्रमाणविचार का ने स्वीकार किया है ।
#96. आत्मा को इस अवस्था में ज्ञान होता है ।
#97. अयुतसिद्ध संबंध अर्थात् ……….।
#98. प्रशस्तपाद के अनुसार आकाश महाभूत में यह गुण नहीं होता ।
#99. समस्त विश्व को जीवन प्रदान करने वाला जल है ।
#100. निम्न में से यह प्राणेन्द्रिय का विषम है ।
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