Padarth Vijnanam Set – 2
#1. संदिग्ध साध्यवान..
#2. अयुतसिद्ध संबंध अर्थात् ……….।
#3. यात्राकरः स्मृतः । (सुश्रुत)
#4. अनुमान परिक्षा-विज्ञानं (चरक)
#5. प्रमेय के कुल प्रकार हैं।
#6. प्रमायाः करणं प्रमाणम् । यह व्याख्या किसने बतायी है ?
#7. यह मूर्तद्रव्य नहीं है ।
#8. तर्क संग्रह के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण के प्रकार है ।
#9. अनुमान परिक्षा भयं ….।
#10. सर्वव्यवहार हेतुः ज्ञानं . । (त.सं.)
#11. निम्न में से यह दर्शन कर्मप्रधान है ।
#12. कणाद ने यह गुण नहीं बताया । ने
#13. अग्नि का नैमित्तिक गुण है।
#14. औलूक्य दर्शन कहलाता है।
#15. . सुश्रुतानुसार कर्मपुरुष है।
#16. पुण्य, पाप ये जैन दर्शनोक्त ……..है।
#17. “हरीतकी बीज से हरीतकी की उत्पत्ति” यह इसका उदाहरण है।
#18. इस आचार्य ने अभाव यह पदार्थ माना नहीं ।
#19. ‘अपथ्य सेवन से हानि नहीं होती’ यह इस शब्द का उदाहरण है ।
#20. त्रिकालिक ज्ञान निम्न में से प्राप्त होता है।
#21. प्रकृति – विकृति धर्म कुल कितने तत्त्वों में होता है ?
#22. अरुणदत्त के अनुसार तंत्रदोष व कल्पना क्रमशः है ।
#23. . क्रियागुणवत् समवायिकारणामिति लक्षणम्। (वैशेषिक द.)
#24. तर्कसंग्रह ग्रंथ के रचयिता है।
#25. . राशिपुरुष कितने तत्त्वात्मक होता है ?
#26. निम्न में से यह मन का प्रधान कर्म है ।
#27. सुश्रुत के अनुसार पदार्थ है ।
#28. नियमन निम्न में से इसका कर्म है।
#29. पंचास्तिकाय में इसका समावेश नहीं होता ।
#30. किसी एक वस्तु का एकदेश ज्ञान न होकर समग्र स्वरूप का ज्ञान न होना ………… प्रमाण है ।
#31. अनैकांतिक हेत्वाभास अर्थात् … हेत्वाभास है ।
#32. न्यायदर्शन में प्रमाण वर्णित है ।
#33. सुश्रुतोक्त तंत्रयुक्तियाँ कितनी है ?
#34. समस्त विश्व को जीवन प्रदान करने वाला जल है ।
#35. गंध गुण के प्रकार निम्न में से हैं ।
#36. पंचतन्मात्राओं की उत्पत्ति इस अहंकार से हुई है।
#37. षट्कारणवाद कौनसे आचार्य ने बताया है ।
#38. अंतःकरण पंचक किसने बताया है ?
#39. शब्द तन्मात्रावाले इन्द्रिय का स्थान है ।
#40. वाग्भट ने तंत्रयुक्तियाँ मानी हैं।
#41. बौद्ध दर्शन के अनुसार द्रव्य है।
#42. जैन दर्शनोक्त व्रत कितने है ।
#43. निम्न से यह पदार्थ का सामान्य लक्षण है ।
#44. ……… इसके अनुसार मन को संसार की नाभि कहा है।
#45. उपनिषद् में इसको अन्नमय कहा गया है।
#46. लक्षणदोष नहीं है।
#47. भावप्रकाश के अनुसार स्त्रोतसामवरोधकृत यह गुण होता है।
#48. नाभिस्थान में उत्पन्न होनेवाली वाणी हे ।
#49. सर्वव्यवहार हेतुः ज्ञानं … ।
#50. उर्ध्वगति इस तेज की होती है ।
#51. पराजय प्राप्ति स्थान अर्थात्……..।
#52. ……. यह मूर्त द्रव्य नही है ।
#53. . संज्ञासंज्ञि संबंध ज्ञानम् … । (तर्कसंग्रह)
#54. न्यायदर्शनोक्त प्रमेय है ।
#55. इन्द्रियों को भौतिक माना है।
#56. पंचावयव वाक्यों में ‘साध्य साधन’ अर्थात् …………..।
#57. अभाव पदार्थ किसने बताया है ।
#58. तैत्तिरिय उपनिषद के अनुसार पृथ्वी महाभूत की उत्पत्ति इस से हुई।
#59. अष्टाध्यायी के लेखक हैं।
#60. माध्यमिक मत इस बौद्ध संप्रदाय को कहते है ।
#61. चक्रपाणि ने इन गुणों को चिकित्सोपयोगी गुण कहा है।
#62. विशिष्ट अद्वैतवाद के प्रणेता है ।
#63. विचार्य’ इसका समावेश मान के में होता है ।
#64. प्रभाकर के अनुसार प्रमाण कितने है ?
#65. ताली बजाना’ यह इस विभाग का उदाहरण है ।
#66. तर्कसंग्रह के अनुसार सामान्य के प्रकार है ।
#67. निम्न में से ये गुण चिकित्सा सिद्धि के उपाय है ।
#68. अग्नि महाभूत में प्रशस्तपादोक्त गुण कितने है ?
#69. यस्य शमने शक्तिः स – 1 (भा.प्र.)
#70. निम्न में से पंचमहाभूत का समावेश है ।
#71. निम्न में से आकाश महाभूत का भौतिकगुण है । (चरक)
#72. न्यायदर्शन के रचयिता है।
#73. प्रशस्तपाद के अनुसार परत्व के भेद है।
#74. आचार्य सुश्रुत ने आप्तोपदेश प्रमाण को कहा है।
#75. हेतु का पक्षपर रहना’ निम्न में से है ।
#76. अधिकरण अवयव कितने है ।
#77. संघातवाद किसने बताया ?
#78. कार्यरूप तेज महारूप का परिमाण है ।
#79. न्यायदर्शन के अनुसार निग्रहस्थान कुल कितने है ?
#80. सिद्धांत कितने है ?
#81. आचार्य अरुणदत्त के अनुसार तंत्रदोष है ।
#82. इंद्रिय के लक्षण पाणिनी सूत्र में — अर्थों से युक्त है।
#83. आदान’ यह इस कर्मेन्द्रिय का कर्म है।
#84. विसर्ग कार्य है।
#85. चरकोक्त दशाविध परिक्ष्य भाव में से धातुसाम्यता निम्न में से है।
#86. सिषाधयिषा विरहित सिद्धि का अभाव अर्थात् – -।
#87. निम्न पर्यायों में से अतिन्द्रियग्राह्य गुण है ।
#88. पाणि’ इस कर्मेन्द्रिय का महाभूत है ।
#89. आद्यपतनस्य असमवायि कारणं …।
#90. समवायी तु निश्चेष्टः कारणं गुणः । यह व्याख्या– ने बतायी है ।
#91. कारणभेद से शब्द के प्रकार है ।
#92. केवल अद्वैतवाद कौनसे आचार्य ने बताया हैं?
#93. इन्द्रियों को अहंकारिक माना है।
#94. कर्मनीयतीवाद इस दर्शन ने बताया है ।
#95. त्रैकालिकोऽभाव…….. ।
#96. कर्तृकारणसंयोगात क्रिया’ इस प्रमाण का लक्षण है ।
#97. हठयोग प्रदीपिका के लेखक हैं।
#98. अरुणदत्त के अनुसार अर्थाश्रय है ।
#99. आत्मा को इस अवस्था में ज्ञान होता है ।
#100. वायु महाभूत की उत्पत्ति इस तन्मात्रा से होती है ।
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