#13. मिथ्योपचारितौ कृद्धौ हत आशीविषाविव। यह इस व्याधि के संदर्भ में कहा है।
#14. तृतीयक ज्वर शिरोग्राही होता है।
#15. लौह शिलाजतु इस दोष में प्रयुक्त होता है।
#16. शिलाजतु सेवन काल का मध्यम प्रकार निम्न में से है।
#17. प्रागुवातसेवन.. अर्श का हेतु है।
#18. मासोदकाम वमन इस अम्लपित्त में होता है।
#19. स्वतन्त्र, परतन्त्र व्याधि… सम्प्राप्ति में समाविष्ट होते है।
#20. छेदवान् वक्त्रशुद्धीकृत… होता है।
#21. वाग्भट के अनुसार तृष्णा व्याधि के प्रकार है।
#22. दग्धगुडाभास मलप्रवृत्ति इस अतिसार का लक्षण है।
#23. प्राणोपरोधिनी हिक्का है।
#24. च्यवनप्राश निर्माणार्थं आमलकीफल कितने लेते है।
#25. त्वक्स्फोटन टीवन गाजसादी है।
#26. प्रज्ञापराधं तं विधात्…….. प्रकोपणम् ।।
#27. कृमियों के अपकर्षणार्थ निम्न में से इसका प्रयोग करते है।
#28. Chyluria may be caused by………
#29. अर्दित……. मार्गगत व्याधि है।
#30. पित्तज 6 प्रमेह की याप्यता का हेतु क्या है च.चि.6.7
#31. हत्तंभ, मूर्धांमय, उदात्तंग…. व्याधि का लक्ष्ण है।
#32. विबद्धः श्वयथुर्यस्य मुष्कबल्लम्बते गले। यह इस व्याधि का सूत्र है।
#33. सिद्धार्थक स्नान होता है।
#34. वातपूर्णद्रुतिस्पर्श शोध कौनसे व्याधि का लक्षण है।
#35. मस्तुलुंग से कफ का स्राव इस नासारोग में होता है।
#36. Oedema is caused due to……..
#37. कृच्छ्रमन्योन्यसंयुक्तं कुष्ठं….. उच्यते ।
#38. आचार्य चरक के अनुसार लेप प्रकार कितने है ।
#39. देव लोग से उन्माद का आक्रमण कैसे होता है। ब. नि. 7
#40. उन्माद के प्रकार कितने है। सुश्रुत
#41. निपीडितो न व उन्नमेद…. शोथ का लक्षण है।
#42. …. बातश्लेष्महर है।
#43. पिपिलिकानां च संचार यह इस वातरोग का लक्षण है।
#44. च्यवनप्राश का रोगाधिकार… है। भैषज्यरत्नावली
#45. क्षारगुडिका इस कल्प का रोगाधिकार है।
#46. विष्टब्धाजीर्ण की चिकित्सा क्या है।
#47. ये औपसर्गिक रोग हैं।
#48. कृष्णपीतशकृनमूत्र भृशं शुनश्च मानवः ।
#49. इंद्रियाणां च वैमल्यं……. का लक्षण है।
#50. Bariow’s disease is the…………
#51. वृषणकच्छू में दोषदुष्य क्या है।
#52. निम्बादि कषाय……. ….. विषमज्वर में प्रयुक्त होता है।
#53. यह बद्धगुदोदर की चिकित्सा है।
#54. बृंहणीयं विशेषेण…. की फलश्रुति है।
#55. वायु कोष्ठाश्रित होने पर वह व्याधि होता है।
#56. ……. यह शोष असाध्यवम होता है।
#57. महानिद्रा दिवा जागरणं निशि यह इस ज्वर का लक्षण है।
#58. शोकजे………
#59. ……….. शमयेत् ।
#60. निम्नमध्या स्वरूप कौनसी प्रमेह पिडका का होता है। सु.नि.6.15
#61. तमकश्वास में यह चिकित्सा प्रयुक्त होती है।
#62. तरुण ज्वर में दोषपचनार्थ यह प्रयुक्त नहीं होता।
#63. कुम्भ प्रयोग कौनसे गुल्म की चिकित्सार्थ करते है।
#64. क्षारतेल का प्रयोग इस व्याधि में होता है।
#65. दुष्टपीनस में…. यह चिकित्सा करनी चाहिये।
#66. कुछ में संसन..काल में करते है।
#67. माधव निदान के अनुसार अल्पचेष्टा से क्षुद्रश्वास, तृष्णा,मोह, निद्रा, श्वासावरोध, क्षुधा, स्वेदाधिक्य, दौर्गन्ध्य इत्यादि लक्षण व्याधि में होते है। मा. नि. 34/3
#68. बातबस्ति के प्रकार है। नाग्भट
#69. पुनर्नवारिष्ट निर्माणार्थ कौनसी पुनर्नवा का प्रयोग करते है। =12.34
#70. रोगांतिका में दोषप्राधान्य होता है।
#71. Most commonly involved cranial nerve in.Herpes Zoster is………..
#72. आहारस्य च यंत्रणात्…. का हेतु है।
#73. इस आचार्य ने अलसक कुछ नहीं बताया।
#74. श्रमोऽरतिविवर्णत्वं यह पूर्वरूप है।
#75. शीतपित्त व्याधि का पूर्वरूप है।
#76. आचार्य चरक के अनुसार कितने साल स्थित घृत को पुराणघृत कहते है। च.चि. 9.60
#77. अश्मावृत हृदय यह इस हृद्रोग का लक्षण है
#78. शीताभिरद्भिश्च विवृद्धमेति यह इस तृष्णा का लक्षण है।
#79. प्रत्यय का पर्याय है।
#80. पारिजातक क्वाथ का प्रयोग कौनसे प्रदेश में करते हैं।
#81. सुश्रुत नुसार इक्षुमेह में यह कषाय प्रयुक्त होता है।
#82. ….यह गुल्म का पूर्वरूप नहीं है|
#83. Complications of TB meningitis unclude all_EXCEPT
#84. जृंभा लक्षण इस धातुगत ज्वर में मिलता है।
#85. अतिसारे निवृत्तेऽपि मन्दाग्नेरहिताशिनः.. का हेतु है।
#86. जटिलाभानं केशेषु यह कौनसे व्याधि का पूर्वरूप हैं। च.नि.
#87. वर्तिस्ताप्रचूडशिखेपमा यह इस व्याधि का लक्षण है।
#88. वातकृद्वा कफहरं कफकृद्वाऽनिलापहम्। कार्य नैकान्तिकं ताभ्यां प्रायः श्रेयोऽनिलापहम् ।। यह इस व्याधि का चिकित्सासूत्र है।
#89. बस्तगंधत्व यह इस व्याधि का पूर्वरूप है।
#90. तैलपंचक में इस द्रव्य का समावेश है।
#91. रक्तपित में प्रवृत पिल्दुष्ट रक्त का वर्ण होता है।
#92. चरकाचार्य के अनुसार वायु के परस्पर .. आवरण है।
#93. दुग्ध सामान्य गुणानुसार इस व्याधि में हितकर होता है।
#94. राजीवलीना इस व्याधि का पूर्वरूप है।
#95. द्वितीयवलि आश्रित अर्थ….. होता है।
#96. ज्वर निष्प्रत्यनीक है।
#97. कटुतैलाभ्यंग व्याधि में करते है।
#98. कुक्षेराध्मानमाटोपी शोको पादकरस्य च …….. है।
#99. वृद्धिः स्वधाम्न्येव…. का लक्षण है।
#100. आचार्य चरकानुसार शिलाजतु के कितने प्रकार है। 1.3.48