#50. माधव निदान के अनुसार अल्पचेष्टा से क्षुद्रश्वास, तृष्णा,मोह, निद्रा, श्वासावरोध, क्षुधा, स्वेदाधिक्य, दौर्गन्ध्य इत्यादि लक्षण व्याधि में होते है। मा. नि. 34/3
#51. गंध तैल रोगाधिकार…. चरक
#52. कोष्ठ में होनेवाला दाह अर्थात्।
#53. वातानुबंध रक्तार्श में यह चिकित्सा प्रयुक्त होती है।
#54. Patient is in anuria, what is not to be done.
#55. उदावर्त में प्रवाहण…. उपशय का लक्षण है।
#56. स्नेहयुक्त विरेचन इस बातव्याधि प्रयुक्त होता है।
#57. पित्तोदर के दुर्बल रुग्णों में…. यह चिकित्सा करनी चाहिये।
#58. शब्दासहिष्णुता यह इस हद्रोग का लक्षण है।
#59. पित्तज प्रमेह में…. चिकित्सा निर्दिष्ट है।
#60. चरकाचार्य के अनुसार वायु के परस्पर .. आवरण है।
#61. राजीवलीना इस व्याधि का पूर्वरूप है।
#62. शुद्धवातहत पक्षाघात होता है।
#63. यह महाकुछ नहीं है। सुश्रुतः
#64. एक साल से पहले क्षतक्षीण.. होता है।
#65. कोटुक शीर्ष व्याधि में इन दोष दृष्य है।
#66. Serum amylase increases in……
#67. गण्डिराचरिष्ट का रोगाधिकार है।
#68. सकण्डू निडका रवाया बहुनाया.. है।
#69. निम्न में से कौनसे व्याधि में पंचकर्म वर्ज्य है।
#70. पुराणघृत का रस और स्वरूप निम्न में से क्रमशः है।
#71. दग्धगुडाभास मलप्रवृत्ति इस अतिसार का लक्षण है।
#72. ….यह तृष्णा का सामान्य लक्षण है।
#73. वान्मानुसार भयज एवं शोकज अतिसार में…. चिकित्सा प्रयुक्त होती है।
#74. रक्तपित में प्रवृत पिल्दुष्ट रक्त का वर्ण होता है।