Mock Test – 6
You are amazing! Keep practicing. Best wishes You tried well! Keep practicing. Best wishes #1. हारीत के अनुसार गर्भोपद्रव है ।
#2. संधिगतयात में निम्न में से यह लक्षण मिलता है।
#3. दाहक्षतक्षयहर निम्न में से यह फल है
#4. औषध सिद्ध तैल, घृत, वसादि इनकी सवीर्यतावधी होती है ।
#5. हृदय निम्न में से यह भाव है। (चरक)
#6. निम्न में से यह आमवात का सामान्य लक्षण है ।
#7. बस्तिशुद्धिकर, चेतोरोगहृत् कौनसा द्रव्य है ।
#8. जोडियों का मेल करें – OPTIONS A: 1. रससार, 2. रक्तसार, 3. मांससार, 4. मज्जासार | OPTIONS B: i) मेधा, ii) बुद्धि, iii) धृति, iv) विद्या, v) इनमे से कोई नहीं
#9. यंत्रस्थाल्युपरी स्थाली न्युब्जां दत्त्वा निरंधयेत् । यह कौनसा यंत्र है?
#10. लोहधातु का द्रवणांक है ।
#11. तुत्थ का शोधन इसमें करते है । (र.र.स. )
#12. मांसबह स्रोतस का यह मूलस्थान नहीं है।
#13. विषाक्त मस्तु में राजी उत्पन्न होती है।
#14. कलियुग इस लोकगत भाव का पुरुषगत भाव है ।
#15. ईषत् पीतश्च रुक्षायो दोषयुक्तश्च । यह इस पारद का वर्णन है ।
#16. अश्वगंधा एवं शतावरी इस स्कंध के द्रव्य है ।
#17. वाग्भट के अनुसार आधार कितने है?
#18. दंतधावन के काल है ।
#19. शंखिया के संदर्भ में जोडियों का मेल करे । OPTIONS A. 1. स्फटिकाभ, 2. हरिद्राभ, 3. शंखाभ OPTIONS B. i) पाण्डु , ii) श्वेत ii) पीत OPTIONS C. a) अधम , b) मध्यम , c) उत्तम
#20. यह विषदोष का नाश करती है ।
#21. काल निम्न में से होता है।
#22. स्थावरविष में यह लक्षण मिलता है ।
#23. द्विदोषज शूल होता है ।
#24. विशेपक्रम में इस उपक्रम के पश्चात् अग्निदाह उपक्रम आया है ।
#25. प्रत्यय निम्न में से इसका पर्याय है ।
#26. पाठा इस द्रव्य की Family है ।
#27. निम्न में से यह आहारपरिणामकर भाव है ।
#28. पारद के मूर्च्छाव्यापत्तिनाशनार्थ यह संस्कार करते है ।
#29. सुश्रुत के अनुसार प्राकृत / निराम पित्त का रस है ।
#30. किक्विस में निम्न में से ये लक्षण मिलते है । (बा.शा.)
#31. निम्न में से इस गुण के कारण विष मर्मघ्न होता है। (चरक)-
#32. शौनक मुनि के अनुसार गर्भ में इस अवयव की उत्पत्ति प्रथम होती है ।
#33. संयोगनाशको गुणो…
#34. गंभारी का रस है ।
#35. कफ से दूषित रक्त होता है । ( सुश्रुत )
#36. विशेषेण मनुष्याणां … परिकीर्तितः ।
#37. विकट यह इसका अग्राह्य स्वरूप है ।
#38. वात का बस्ति यह स्थान निम्न में से इस आचार्य ने बताया है।
#39. इस गर्भवती स्त्री की संतान उन्मत्त होती है।
#40. औषचोषपरिदाह धूमायन यह निम्न में से इसका लक्षण है
#41. शोफहर चिकित्सा इस विषवेग में करते है । (चरक)
#42. क्षीरविष कितने है ?
#43. परिणाम लक्षणो…I(र.बै.)
#44. ऋद्धि – वृद्धि का प्रतिनिधि द्रव्य है ।
#45. कुटज, कटुका, अश्वगंधा क्वाथ का प्रयोग इस रजोदुष्टी में करते है ।
#46. मेदोधातु का उपधातु है। (चरक)
#47. स्तनयोम्लनता स्तन्यासंभवोऽल्पता वा ।
#48. मण्डलीसर्प की विष वृद्धि इस अवस्था में होती है। (चरक)
#49. निम्न में इन अस्थियों की संख्या 1 है। (चरक)
#50. भोजने च…वारि ।
#51. मण्ड एवं पेया में क्रमशः … गुना जल होता है।
#52. शीघ्रवाही निम्न में से कौनसी सिरा है? .
#53. कुष्ठ का स्वरूप होता है।
#54. कल्क में मधु, घृत, तैल इनकी मात्रा प्रक्षेपार्थ है ।
#55. मावनिदान में उपदंश के प्रकार है।
#56. सिरामर्म कितने है?
#57. तिमिरदर्शन यह निम्न में से इसका लक्षण है ।
#58. मंडलाकार मसूरिका इस धातुगत अवस्था में उत्पन्न होती
#59. स्वगवेधुका निम्न में से इसका पर्याय है ।
#60. मेद निम्न में से इस स्रोतस का मूलस्थान है । (चरक)
#61. हृदिवेदना यह इस विषवेग का लक्षण है। (सुश्रुत)
#62. क्वाथ की सेवन मात्रा है।
#63. उपद्रव का वर्णन चरकाचार्य ने निम्न में से इस अध्याय में किया है ।
#64. पाटला द्रव्य की दोषघ्नता है।
#65. आगंतबो दुर्बलस्य बलवत् विग्रहात् यह निम्न में से कौनसा व्याधि है ?
#66. राजमृगांकरस का रोगाधिकार है । ( भा. प्र . )
#67. सृष्टि उत्पत्तिविषयक अंधपगुन्याय किसने बताया ?
#68. तालखर्जूररसैः संधिता निम्न में से है । (शारंगधर)
#69. लवण रस से इस धातु की वृद्धि होती है।
#70. निम्न में से यह सद्योगृहित गर्भा के लक्षण है ।
#71. समुद्रफेन निम्न में से इस गण का द्रव्य है । (चरक)
#72. Achyranthes aspera is latin name of …….
#73. वातिक शोथ में बातहर एवं शोथहर दशमूल क्वाथ का प्रयोग यह कौनसा उपशय है ?
#74. सुश्रुत ने वातज कीट कितने बताये है?
#75. निम्न में से इन द्रव्यों का समावेश मधुरत्रय में होता है । (रा.नि.)
#76. उत्तानपत्रक निम्न इसका पर्याय है ।
#77. तर्पयन्ति सदा …सरितः सागरं यथा । ( सुश्रुत )
#78. दवकर सर्प कितने है
#79. अवेध्य सिरायें है
#80. मांसासृक्कफमेदः प्रसादात् …..
#81. रक्त धातु निम्न में से इसका पर्याय है।
#82. चंद्रप्रभा वटी का रोगाधिकार है। (भै.र.)
#83. मासि सर्वेन्द्रियाणि सर्वांगावयवाश्च योगपद्येनाभिनिर्वर्तन्ते ||
#84. लोहं लोहांतरे क्षिप्तं ध्यातं निर्वापितं द्रवे । पाण्डुपीतप्रभं जातं. इति अभिधियते ॥ ( र. र. स.)
#85. संधानकर शरीरस्य यह इस दोष का कर्म है। (चरक)
#86. रस के अनुसार आहार सेवन क्रम है। (नि.र.)
#87. इन्द्रिय के द्वारा द्रव्य, गुण एवं जाति का ज्ञान इस सन्निक होता है ।
#88. ….. तु यस्यां छिन्नायां ताम्यत्यन्ध इव च तमः प्रविशति यां चाप्यधिष्ठायारूंषि जायन्ते । (च.शा. 7/4)
#89. निम्न में से यह चंदनप्रकार व्यंगनाशक होता है ।
#90. माधवनिदान के अनुसार छर्दि का उपद्रव है ।
#91. गोदुग्ध में कितने गुण होते है ? (चरक)
#92. माधवनिदान ग्रंथ में विसर्प के दूष्य है ।
#93. तगर, कुटज, गुंजा इन द्रव्यों का समावेश निम्न में से इन द्रव्यों में होता है ।
#94. मूलाधार चक्र में कितनी दले होती है।
#95. स्थिरीभवत्योजः। (सुश्रुत)
#96. Apium glucoside is found in …….
#97. राजनिघण्टु में औषधियों के नामकरण के आधार बताये है
#98. गलगण्ड का यह प्रकार माधवनिदान में वर्णित नहीं है।
#99. शारंगधर के अनुसार संधि यह स्थान इस दोष का है।
#100. सर्वप्राणिनां सर्वशरीरव्यापिनी यह कौनसी कला है?
#101. गोधूम होता है।
#102. निम्न में से यह क्षुदुगारविधातकृत है ।
#103. मांसपेशियों कुल संख्या होती है । (चरक)
#104. दोषदुष्याश्च यह निम्न में से कौनसा हेतु है ?
#105. निश्चितसाध्यवान्
#106. लोध्र का वीर्य है ।
#107. अकाले बाहमानया गर्भेण पिहितोऽनिलः | यह इस योनिव्याप का हेतु है।
#108. Indian dill fruit इसका English नाम है।
#109. उदुम्बर निम्न में से इसका पर्याय हैं।
#110. अङ्गरसधातुर्हि विक्षेपोचितकर्मणा यह निम्न में से इसके संदर्भ में कहा है । (चरक)
#111. सुश्रुत के अनुसार ओज गुणात्मक होता है।
#112. मुद्र होता है।
#113. संधिवेदना निम्न में से इसका लक्षण है।
#114. क्लेशक्षमो यह इस प्रकृति का लक्षण है।
#115. निर्वक्रगोलकाकारा पुटनद्रव्यगर्भिणी । … इति सा प्रोता सत्त्वरद्रवरोधिनी । ( र. र. स.)
#116. द्विहस्त चतुरस्त्र यह इस पुट का परिमाण है ।
#117. अपराजिता के पुष्पवर्ण के अनुसार प्रकार है ।
#118. निम्न में से इसको अङ्गआहाररसयोनित्वात्ंफ कहा है ।
#119. ज्वर इस स्रोतस के दृष्टि का लक्षण है। (चरक)
#120. स्थौल्यका क्रिया क्रमेण’ यह इसकी चिकित्सा हैं। अ.सं(ग्रह )
#121. पित्त का परिमाण कितने अंजली है ?
#122. युक्तस्तीशीतेनक्ष्णाद्याः … कुर्वते ।
#123. बातलानां च सेवनात्’ यह इस स्रोतस के दुष्टि का हेतु है (चरक) A)
#124. प्रभा के संदर्भ में योग्य विधान है ।
#125. मूढसंज्ञता यह निम्न में से इसका लक्षण है। (सुश्रुत )
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