Full Syllbus Test – 9
Results
#1. चरक के अनुसार अहेतु के प्रकार है।
#2. नित्यग एवं आवस्थिक निम्नतः इसके प्रकार है।
#3. आचार्य भेलनुसार मन का स्थान है।
#4. ….. नाम तर्क युक्त्यपेक्षः । (च.वि. 8 )
#5. ……….नाम आप्तोपदेशो वेदादि ।
#6. Act as digestive system of cell.
#7. RBC form in mesoderm of the yolk sac at
#8. Kupffer’s cells are found in the
#9. ………. period called secretary phase
#10. धातुगतिः समा’….. का कार्य है।
#11. अग्निधारण’ कर्म है।
#12. तार्क्ष्य’ समान अनुकत्व इस प्रकृति में पाया जाता है।
#13. शीत एवं रुक्ष गुण का एक साथ प्रभाव के कारण होता है।
#14. शोफादि अवदीर्णानां व्रणभावम्’ क्रियाकाल का वर्णन है।
#15. सुश्रुतनुसार ‘अस्थिशुन्यता’ यह लक्षण …. धातुक्षय का है।
#16. हताधिमंथ’ व्याधि इस अधिमंथ की उपेक्षा से होता है।
#17. Night Blindness’ यह लक्षण इस व्याधि का है।
#18. सुश्रुताचार्यनुसार कृष्णगतव्याधि में तर्पण….. मात्रा करें।
#19. रसांजन प्रयोगार्थ मध्यम मात्रा है।
#20. सुश्रुताचार्यनुसार नासाशोथ के प्रकार है।
#21. वाग्भटाचार्यनुसार शिरोगत रोग नहीं है।
#22. According to Dalhana, why does a person with Pitta Prakriti often suffer from व्यथितास्यगति: (painful movement of mouth)?
#23. मांसतान’ व्याधि दोष दृष्टि से उत्पन्न होता है।
#24. असाध्य मुखरोगों की संख्या है।
#25. Medial border of femoral triangle is form by muscle.
#26. मातृपृष्ठाभिमुखाकृतांजलि’ गर्भ की स्थिति आचार्य ने वर्णन की है।
#27. काश्यप नुसार कोष्ठांग है।
#28. रक्तमेद प्रसादात्’………… उत्पन्न होता है।
#29. धरा…… प्रोक्त। शारंगधर
#30. षड्धात्वात्मक पुरुष अर्थात् यह पुरुष है।
#31. आवर्त’ मर्म प्रकार है।
#32. ……..मन प्रतिबुद्धतर भवति ।
#33. कुलीरविषाणीका’ नाम है।
#34. भावप्रकाश संहिता के काल के पश्चात् वाले निघण्टु को कहा जाता है।
#35. कुमारी का वर्णन सर्वप्रथम निम्नतः इस निघण्टु में आया है।
#36. ……..तु क्रियते येन सा क्रिया । चरक
#37. निम्नत: पंचरसात्मक द्रव्य नहीं है।
#38. संधिबंधन’ शैथिल्यकर द्रव्य होते है।
#39. Malvaceae’ ‘कुल का द्रव्य है।
#40. सुश्रुताचार्य ने अन्न द्रव्य वर्ग वर्णन किये है।
#41. अतिविषा’ द्रव्य सम्मिलीत होनेवाला योग है।
#42. अंधभूषा का सर्वप्रथम वर्णन किया है।
#43. अंगारमणि’….. का पर्यायी नाम है।
#44. निराग्नि निर्गन्ध’ मूर्च्छना का कल्प है।
#45. Green Vitriol’ का अर्थ है।
#46. अष्टा चाष्टफलकः षट्कोणो मसृणो गुरु’ यह ग्राह्य लक्षण है।
#47. रोमशातनार्थ’ श्रेष्ठ तैल है।
#48. एककंसपात्र अर्थात् है।
#49. मंथ’ कल्पना का पर्याय है। 69
#50. सिद्ध घृततैल की सवीर्यता अवधी है।
#51. गंधक का Melting Point है।
#52. देश बन्धश्चित्तस्य……………
#53. ग्रीष्मऋतु में प्राणायाम वर्ज्य है।
#54. षट्कर्म’ में प्रधान कर्म है।
#55. अन्तरंग योग अर्थात् निम्नतः है।
#56. मूलाधार’ स्थान में स्थित चक्र की देवता है।
#57. जीवजीवक’ इस प्राणी पर विष का प्रभाव होता है।
#58. ….. उग्रविषाणी । सुश्रुत
#59. विष के इस गुण के कारण सुश्रुताचार्य विष को दुश्चिकित्स्य कहते है।
#60. यह दुषीविष याप्य माना जाता है।
#61. लुता का विष अधिष्ठान है।
#62. Hashimoto’s Disease mainly occurs in……
#63. अधोग रक्तपित्त चिकित्सा में है।
#64. किराततिक्तामृता चन्दनं विश्वभेषज इस ज्वर की चिकित्सा में उपयोगी है।
#65. कर्णमूल शोथ यह निम्नतः इस ज्वर के उपद्रव स्वरुप पाया जाता है।
#66. तैलपन्चक’ इस व्याधि के रोगाधिकार के अन्तर्गत है ।
#67. महागद’ इस व्याधि को संबोधित किया है।
#68. निदानदोषऋतुविपर्ययक्रमैरुपाचरेत् तं बलदोषकालवित् । । इस व्याधि का चिकित्सा सूत्र है ।
#69. श्लीपद’ व्याधि के दोष दुष्य है। (चरक)
#70. स्त्रीद्वारा दिये गये रज, रोम, विड, मूत्रादि सेवन से उदर उत्पत्ति होती है।
#71. कुलग्रहणीदोष है।
#72. ओजोनाश’ प्रायः मद की इस अवस्था में उत्पन्न होता है।
#73. कफपित्तानुबंधी पक्षवध’ चिकित्सा में है।
#74. अनुवासन बस्ति का प्रयोग इस ऋतु में रात्रि करें।
#75. कफ का नानात्मज व्याधि है।
#76. योग्य क्रम लगाए (नेत्रछिद्र, वय) 1) सतीन 2) कर्कन्धु 3) मुद्ग a) 6 वर्ष b) 8 वर्ष c) 12 वर्ष d) 20 वर्ष
#77. प्रसर’ के प्रकार है।
#78. अष्टांग संग्रह के अनुसार सहज व्याधि है।
#79. मलज (बाह्य) कृमि का वर्णन इस आचार्य ने नहीं किया है।
#80. Amount of Tidal volume is
#81. सुश्रुताचार्य नुसार शल्य निर्हरण के उपाय है।
#82. निम्नतः क्षार का गुण है।
#83. मांसगत विकारों में……..से अग्निकर्म करें।
#84. रक्तस्तंभनकर उपयोग में श्रेष्ठ उपाय है।
#85. Formation of uric acid stones found in ……
#86. इस भगन्दर में गुदभागी कृमि उत्पन्न होते है।
#87. गलगण्ड’ का यह प्रकार वर्णित नहीं है।
#88. काण्डभग्न का (fracture) भेद है।
#89. अर्श व्याधि की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सार्थ उपयुक्त है।
#90. गर्भ हास होकर, गर्भस्पंदन क्वचित कभी कभी सुनाई देते है।
#91. गर्भावस्था में पंचपिण्डक इस मास में होती है।
#92. Broxton-Hicks sign’ गर्भावस्था में मिलता है।
#93. शारंगधर ने गर्भज रोग माना नहीं है।
#94. निमीलिताक्षो मूर्धस्य… न धारयेते! लक्षण से बालक का यह व्याधि का ज्ञान होता है।
#95. गुदपाक’ व्याधि में दोष हर चिकित्सा प्रधान है।
#96. Baby birth weight at 5th month becomes …… than weight at birth.
#97. At birth or so on after there 6 weeks the vaccine to be give is
#98. अपरिपक्व धातु एवं विवर्धमान धातु’ ये बाल्यावस्था के भेद इस आचार्य ने माने है।
#99. जातमात्रमेवं बालं उत्पात्… मार्जयेत् ।
#100. सुश्रुतानुसार बालक की क्षीरप अवस्था……. है।
#101. बालक में संशमनीय कल्क की मात्रा दे।
#102. शुन अक्षि, ग्रथीत वर्च प्रवृत्ति, एकनेत्रस्राव यह इस ग्रह का लक्षण है।
#103. धार, कार’ यह जल के भेद है।
#104. यदा कुर्वन्ति स….. । चरक
#105. शारंगधर ने रक्तज व्याधि की संख्या बताई है।
#106. कंठ कपोल विदहति’ इस सेवन से उत्पन्न होता है।
#107. वातहर द्रव्य में श्रेष्ठ द्रव्य है।
#108. आचार्य सुश्रुत का काल है।
#109. शतश्लोकी’ ग्रंथ के कर्ता है।
#110. भोर कमिटी की स्थापना इस साल हुई।
#111. आयुर्वेद को पंचमवेद इस आचार्य ने कहा ।
#112. योगदर्शन में प्रमाण वर्णित है।
#113. वाग्भटानुसार पित्त का विशेष स्थान है।
#114. इस न्याय को पूर्णत: त्याज्य समझा जाता है।
#115. Rh factor present on the cell membrain of
#116. प्रसादभूत दोष की उत्पत्ति पाचन की इस अवस्था में होती है।
#117. निम्नतः कण्डू यह लक्षण …… में पाया जाता है।
#118. सत्वरजोबहुल….।
#119. धमनी धारण यह कर्म है।
#120. महाजव’ शब्द इससे संबंधित है।
#121. क्षीरपूर्णलोचन’ इस सारता का लक्षण है।
#122. …….वाहिनी दुष्यन्ति विरुद्धानां च भोजनात्।
#123. शालाक्य तंत्र के प्रवर्तक है।
#124. वाग्भट के अनुसार ‘सिरोत्पात’ व्याधि का आश्रय है।
#125. नेत्र में संधि, पटल, मण्डल संख्या क्रमशः है।
#126. उत्संगिनी’ व्याधि का आश्रय स्थान है।
#127. शंखचर्म आश्रित कृष्णगत व्याधि है।
#128. वातहतवर्त्म’ व्याधि में इस Nerve की विकृति होती है।
#129. शारंगधरानुसार रोपणार्थ उत्तम शलाका है।
#130. आचार्य भटानुसार कर्ण शष्कुली के व्याधि है।
#131. भेरी, मृदंग समान नाद सुनाई देना व्याधि का लक्षण है।
#132. Tunning fork test’ द्वारा विकृति का ज्ञान होता है।
#133. श्रृंगाटक मर्म’ दूषित होने पर व्याधि होता है।
#134. This is largest branch of sacral Plexuses.
#135. This is not the part of brain stem…
#136. Optic nerve is …… in nature.
#137. त्वचा का सर्वाधिक बाह्य स्तर है।
#138. संपूर्ण शरीर में व्याप्त रहनेवाली कला है।
#139. चरकाचार्यनुसार पेशीओं की संख्या है।
#140. संरक्षक द्रव्य में पानी, सिंदूर, मैदा इनका प्रमाण अनुपात में रहता है।
#141. वाग्भटानुसार ‘सिमंत’ संख्या है।
#142. उर को आचार्य ने ‘जीवरक्ताशय’ कहा है।
#143. गर्भ में सर्वप्रथम ‘पाणीपाद’ उत्पत्ति आचार्य ने मानी है। सुश्रुत ।
#144. Is the chief muscle of respiration
#145. Right coronary artery arises from
#146. Strychnine’ इस द्रव्य का रासायनिक संघटन है।
#147. अहिफेन यह द्रव्य का …. है ।
#148. शंखपुष्पी’ द्रव्य का मेध्य कार्य करने के लिये इस रूप में सेवन करें।
#149. रसोन बीज…. रसात्मक है।
#150. इस द्रव्य को Marking Nut कहा जाता है।
#151. इस विपाक का ज्ञान अनुमान से होता है।
#152. सर’ गुण संबंधी योग्य वर्णन है।
#153. मागधी’ यह द्रव्य नाम इस आधार पर रखा है।
#154. पंचकोल समरिचम् ….. I
#155. Embelia ribes is the latin name of….
#156. शारीर गुण है।
#157. हरताल का शोधन द्रव्य है।
#158. चन्द्रार्क’ के घटक द्रव्य है।
#159. निम्न में से उपरस है।
#160. हिंगुल’ का यह प्रकार श्रेष्ठ माना जाता है।
#161. निम्नतः यह अभ्रक का खनिज द्रव्य है।
#162. पारद का यौगिक दोष है।
#163. पारद का विषदोष निर्हरणार्थ उपयुक्त है।
#164. शारंगधरानुसार औषधि सेवन काल है।
#165. विटी निर्माण समय गुड का प्रमाण चूर्ण की अपेक्षा …….ज्यादा रहना चाहिये।
#166. स्नेहपाक विधि में क्वाथ प्रयोग हुआ तो कल्क का प्रमाण होना चाहिये।
#167. Incubation period of ‘syphillis’ is
#168. WHO was established in
#169. Health serve and development comittee is also called as……. comittee.
#170. Natural pollutant is..
#171. Water soluble vitamin is
#172. निम्नतः ………बंध प्राणायम करते समय उपयुक्त है।
#173. वस्त्र अथवा कोष्णजल से आमाशय क्षालन करना अर्थात् यह कर्म है।
#174. नास्ति योग समं बलम् । योग व्याख्या का संदर्भ है।
#175. सुश्रुताचार्य के अनुसार श्रेष्ठ फल है।
#176. This is the chief ‘green house’ gas
#177. घोनस’ सर्प उम्र की इस अवस्था में तीव्र विषाक्त है।
#178. कुल कीट संख्या है।
#179. The strongest corrosive poison is
#180. A stippled blue line called burtonian line is seen on.
#181. Is also known as ‘district Magistrate’
#182. कफज प्रमेह का भेद है?
#183. दाहकण्डुरुजारागपरितं लोमपिंजरम्’ इस कुष्ठ लक्षण का है
#184. वातप्रधान कुष्ठ में सर्वप्रथम पान कराए।
#185. अयथाबलमारम्भं वेगसन्धारणं क्षयम्…. कारणं विद्याच्चतुर्थ विषमाशनम् ॥ व्याधि का हेतु है।
#186. तैरल्पलत्वस्य मलः प्रदुष्टा बुद्धेर्निवास हृदयं प्रदुष्य…। इस व्याधि की संप्राप्ति है।
#187. हृदयस्पन्दनं’ रौक्ष्यं स्वेदाभावः श्रमस्तथा ।’ व्याधि का पूर्वरुप है।
#188. अभया आमलकी रसायन पाद में कुल योगों का वर्णन है।
#189. वाग्भटाचार्यानुसार मधुमेही के लिए शिलाजीत ……..मात्रा में प्रयोग करें।
#190. निम्नतः व्याधि प्रायः परस्पर एक दूसरे के हेतु है।
#191. वाग्भटनुसार ‘लोहर’ व्याधि अर्थात् यह व्याधि है।
#192. प्रतिश्याय’ व्याधि विरेचन के इस योग में उत्पन्न होता है।
#193. आचार्य सुश्रुतानुसार मुत्राघात के भेद है।
#194. चरकाचार्यानुसार आश्रय भेद से नस्य के भेद है
#195. निम्नलिखित व्याधियों में से किस एक के एक से अधिक प्रकार होते है ?
#196. For athletic foot causative organism is
#197. माधव निदान नुसार मूर्च्छा के भेद है।
#198. शुकदोष संख्या है।
#199. When the number of small squares between two heart beats is 20 then rate is…….
#200. व्याधिनिश्चय करणं….. मा.नि.
#201. हेमंतजी मधुर रसः कफस्य ।’ व्याधि का हेतु है।
#202. संस्थान’ अर्थात है।
#203. प्रमेह’ व्याधि में हरिद्रा प्रयोग करना अर्थात् उपशय है।
#204. उष्मणो अल्पबलत्वेन धातुमाद्यपाचितम् । दुष्टमामाशयगतं रसं …. प्रचक्षते ॥ अ.हृ.
#205. कालकृत, अकालकृत व्याधि के भेद है।
#206. स्तब्धपूर्णकोष्ठता’…. का लक्षण है।
#207. शुकपूर्णगलास्यता’ इस व्याधि का पूर्वरूप है।
#208. उष्णोपचार इस दग्ध में निर्दिष्ट है।
#209. स्वस्तिक यंत्र है।
#210. अस्थि छेदनार्थ’ उपयुक्त शस्त्र है।
#211. निम्नतः शस्त्र का गुण है।
#212. मांस छेदनार्थ शस्त्र की ……….पायना उपयुक्त है।
#213. निम्नतः सविष जलौका है।
#214. त्रिकसंधि मध्यभाग में सिरावेध का निर्देश इस व्याधि में दिया है।
#215. सर्पी, तैल, बसा’ सम व्रण का…….. है ।
#216. नातिरक्तो नातिपाण्डु नातिश्यावो नाति रुक् ।’ व्रण लक्षण है।
#217. स्थगिका बन्ध’ इस स्थान में उपयुक्त है।
#218. कदम्ब पुष्प’ समान अर्श है।
#219. स्वगुदेऽब्रह्मचर्याद्यः स्त्रीषु पुंवत प्रवर्तते । नपुंसक है।
#220. चरकानुसार ‘पुत्रघ्नी’ योनिव्यापद दोष प्रधान है।
#221. नित्य योनिवेदना’ इस योनिव्यापद का लक्षण है।
#222. तदेवाति प्रसंगेन प्रवृत्तम्॥ व्याधि संबंधी वर्णन है।
#223. गर्भपोषण इस न्याय से होता है। (वाग्भट)
#224. शुक्राणु’ की लंबाई है।
#225. Is acquire or intermenstrual vaginal bleeding
#226. Polyhydroamnios is condition in which AFI (amniotic fluid index) is greater than
#227. निम्नतः मूढगर्भ का प्रकार नहीं है।
#228. शटीसिद्धंपलाशे वापि भस्मानी । …… वीर्य दोष की चिकित्सा है।
#229. सृमर’ मांससेवन करने की इच्छा उत्पन्न हुई तो, गर्भिणी को उत्पन्न पुत्र होता है।
#230. काश्यपानुसार मलिन दन्त उत्पत्ति इस दन्त प्रकार में पाई जाती है।
#231. बालक की बौद्धिक शक्ति वृद्धि हेतु संस्कार करना चाहिए।
#232. मलभिन्नता’ इस स्तन्यदृष्टि के कारण उत्पन्न होता है।
#233. अजगल्लीका व्याधि में प्रायः उपचार करे।
#234. पूर्वानुप्लव व्याधि की चिकित्सा इस व्याधि समान करे ।
#235. Baby recognized mother at the age of
#236. अपथ्यकर’ श्रेष्ठ द्रव्य है।
#237. अनुलोम संभाषा विधि अर्थात् है ।
#238. पंचमहाभुत सिद्धांत’….. है।
#239. स्त्रोतोंदृष्टि का हेतु नहीं है।
#240. निम्नलिखित व्याधि में स्नान निषेध है।
#241. वैष्णवी’ निद्रा इस आचार्य ने वर्णन की है।
#242. संशमन’ यह इस महाभूत का कर्म है।
#243. वाग्भटानुसार तंत्रयुक्ति के प्रकार है।
#244. …….यह ज्ञात करने के लिए दशविध परिक्षा उपयुक्त है।
#245. ……के कारण से सत्याबुद्धि उत्पन्न होती है।
#246. चरकाचार्य ने स्वभावोपरमवाद का वर्णन इस अध्याय में किया है।
#247. तिक्त रसात्मक श्रेष्ठ दंतपवन है।
#248. छर्दि बेग’ धारण करने से उत्पन्न लक्षण है।
#249. रस प्रदोषज विकारों में चिकित्सा दे।
#250. सुश्रुताचार्यनुसार अस्थिवह स्त्रोतसों की संख्या है।



