Full Syllbus Test – 10
Results
#1. मकृतवर्णी एवं शीघ्रपायी होनेवाली निर्विष जलौका है।
#2. इस स्थान पर आघात से उत्पन्न व्रण का जल्दी रोपण नहीं होता ।
#3. इस स्थान पर आभ्यंतर विद्रधि से हिन्का उत्पन्न होती है।
#4. इस भगंदर में अग्निकर्म उपयोगी है।
#5. शस्त्रकर्म करते समय कुल अवेध्य सिरा बतायी हैं।
#6. Oesophageal varices are found in……..
#7. यज्ञोपवित प्रतिमा पिडका’ विशेषतः इस रोग में होती है।
#8. माप निदान के अनुसार वृद्धि रोग के प्रकार हैं।
#9. सुश्रुत के अनुसार इस जगह पर तिर्यक् छेद लेना चाहिये।
#10. आचार्य चरक के अनुसार व्रण के उपद्रव होते है।
#11. व्रण शोधनार्थ इसका उपयोग करते हैं।
#12. कपोत वर्ण इस दन्ध की विशेषता है।
#13. शंखप्रदेशी यह बंध बांधते हैं।
#14. मेढ्रचर्म विदारण’ इस व्याधि की विशेषता है।
#15. त्रिभिदोषैराक्रन्तः श्याची स्तथा पिडका समः।’ इस व्रण का लक्षण है।
#16. हरीतकी गुड के साथ कार्य करती है।
#17. . निम्न में से यह प्रधान यंत्र है।
#18. शरारीमुख शस्त्र का उपयोग होता है।
#19. पानीय क्षार का उपयोग इस व्याधि में होता है।
#20. सुश्रुत के प्लुष्ट दग्ध को वाग्भट ने ……कहा है।
#21. आयुर्वेदप्रकाश के अनुसार गैरिक के प्रकार हैं
#22. सुवर्ण, रजत का समावेश इस लोह में किया जाता है।
#23. निम्न में से इस द्रव्य का समावेश महारस में होता है।
#24. मासिक शोधनार्थं इसका उपयोग करते हैं।
#25. सस्यक भस्म की औषधि मात्रा है।
#26. पारद के नैसर्गिक दोष है।
#27. ताम्र धातु का द्रवणांक है।
#28. उत्तम गौरीपाषाण है। (र.र.स.)
#29. FeSO, 7HO इस द्रव्य का रासायनिक स्वरूप है।
#30. गोरक्ष संहिता का काल है।
#31. यंत्रस्थाल्युपरि स्थाली न्युब्जा दत्त्वा निरुधयेत् । इस यंत्र का वर्णन है।
#32. भूधर पुट में वन्योपल की संख्या होती है।
#33. बंगारि’….. का पर्याय है।
#34. शारंगधर के नुसार औषध सेवन का प्रथम काल है।
#35. क्वाथादीनां पुनः पाकात् घनत्व सा…..।
#36. यत्तालखर्जूररसैः सन्धिता सा हि ….. ।
#37. लोहासव में लोहचूर्ण की मात्रा होती है। (शारङ्गधर )
#38. 4 भाषा अर्थात्………..
#39. वर्त पर्याय है।
#40. स्वरस में प्रक्षेपणार्थ इतने प्रमाण में गुड डालना चाहिए।
#41. बंगलोर विधि….. की पद्धति है।
#42. कामगार से एक सप्ताह में अधिकतम….. घंटे और एक दिन में….. घंटे से अधिक काम नहीं करवाना चाहिए।
#43. हद्रोग में उपयुक्त आसन है।
#44. तदेवार्थं मात्रानिर्भासं स्वरूप शून्यमिव ….. ।
#45. सुरक्षित कालावधि को कहते है।
#46. Wernick’s encephalopathy is caused due to …… deficiency
#47. अष्टांग संग्रह के अनुसार हृद्यं ….. कृमिनुत्स्वादुलपार्क
#48. भारत में अन्नमिश्रण प्रतिबंधक कायदा इस साल से लागू
#49. गुरुत्वाकर्षण पद्धति (Gravity) का फिल्टर है।
#50. आंत्रिकवर का प्रमाण इस वयोगट में सर्वाधिक होता है।
#51. उदान एवं व्यानवायु के विकृति के लिए इस काल में औषधि लेना हितावह है।
#52. प्रावृट ऋतु में इस दिशा से बायु बहता है।
#53. वीर्य के बाहर जाने के स्वाभाविक प्रवृत्ति को कहते है।
#54. संज्ञाप्रबोधन’ नस्यप्रकार इस आचार्य ने वर्णन किया हैं।
#55. तासामुपयोगाद्विविध रोगप्रादुर्भावो… वा भवेत । सु.सू. 6/19
#56. भोजनाग्रे सदा पथ्यम्’ यह वर्णन इस द्रव्य के संबंध में
#57. सूतिकावर में चित्रकमूल इस अनुपान सह देना चाहिए।
#58. . इस द्रव्य को अंग्रेजी में Sweet flag कहते है।
#59. Gardenia gummifera इस द्रव्यका Latin नाम है
#60. इंद्रयव इस Family का द्रव्य है।
#61. कुष्ठ वनस्पति का स्वरूप है।
#62. पुष्करमूल के रासायनिक संघटन है।
#63. ब्रह्मदर्भा’ वनस्पति इस नाम से पहचानी जाती है।
#64. नव गुग्गुल के संबंध में असत्य विधान है।
#65. करवीर द्रव्य के भेद हैं।
#66. इस द्रव्य का पर्यायी नाम अरिष्ट है।
#67. कुलत्थ द्रव्य की रोगी के इस अवस्था में अत्याधिक निषेध किया है।
#68. Jasmin officinale इस दशेमानीगण का द्रव्य है।
#69. द्रव्य नामकरण के इस आधार पर विडंग का पर्याय चित्रतण्डुल रखा गया है।
#70. पिप्पली वर्धमान रसायन कितने दिन तक सेवन करने का
#71. धान्यक का प्रयोज्य अंग है।
#72. वाग्भट के अनुसार कुटज द्रव्य इस विकार की प्रधान
#73. श्रेष्ठ विषघ्न द्रव्य है।
#74. शारङ्गधर के नुसार जीरक का औषधि कर्म है।
#75. कुमारशिरा भरद्वाज के अनुसार रस की संख्या है।
#76. कुटरणा इस द्रव्य का पर्याय है
#77. प्रतिद्वंद चिकित्सा’ इस व्याधि में करते हैं।
#78. संध्या काल में उत्पन्न लक्षण इस ऋतु के साथ लादृश्य
#79. पक्वातिसारनाशक गण के नाम से प्रसिद्ध है।
#80. चरकाचार्य ने सुश्रुताचार्य से…..तन्त्रयुक्ति अधिक
#81. रसतरंगिणी अनुसार उपविष की संख्या है।
#82. पित्त कफ आधिक्य से कुष्ठ प्रकार वर्णित है।
#83. इस आचार्य ने ओज को शुक्र का उपधातु कहा है।
#84. निम्न में से यह मूत्र चरक के अनुसार उदररोग का नाश
#85. सर्वरसप्रत्यनिक एवं उदरशोधक रस है।
#86. सुश्रुत के अनुसार अंजन का श्रेष्ठ प्रकार है।
#87. शरलोमा का प्रसिध्द बाद है।
#88. मूलासव की कुल संख्या है।
#89. भक्ति तथा स्मरणशक्ति का अकस्मात् नाश होनेपर ….. कालावधि में मृत्यु होती है। च. इ. 11
#90. सिद्धार्थक तेल का रोगाधिकार है।
#91. यमद्रंष्ट्रा का वर्णन इस आचार्य ने किया है।
#92. अवबाहुक में यह कर्म निषिद्ध है। सु.चि. 5/23
#93. सुश्रुतानुसार इस व्याधि में शस्त्रकर्म के बाद एक साल तक स्त्री सेवन न करने का निर्देश है।
#94. इस विषाक्त जीव के दष्ट लक्षण स्वरूप अग्निदग्धवत् पीडा उत्पन्न होती है।
#95. निम्न में से उष्णवीर्य और हिमस्पर्श यह इस पदार्थों का वैशिष्ट्य है।
#96. मधु का सेवन मुख्यतः इस ऋतु में करना चाहिए।
#97. सबसे प्राचीन संहिता है।
#98. नारसिंह चूर्ण का रोगाधिकार है।
#99. बीजात् समांशदुपतप्तबीजात् यह वर्णन निम्न में से इस नपुंसक प्रकार का है।
#100. अवपीड नस्य की उत्तम मात्रा है।
#101. नामग्रहण’ इस अनुमानजन्य भाव का ज्ञेय भाव है
#102. हेती लिंगे प्रशमने रोगाणाम् अपुनर्भवे। वैद्य लक्षण है
#103. भ्रम व्याधि में दोषों का प्राधान्य होता है।
#104. वायुः प्रवृद्धो निचितं बलासं नुदत्यधः स्ताद’ सम्प्राप्ति है।
#105. शूलं जीर्यती भोजने’ (मा.नि.) इस व्याधि का पूर्वरुप है।
#106. चरकाचार्य नुसार नाभिनाडी छेदन विधि में कितने स्थान पर बंध प्रयोग करे ?
#107. नवजात बालक को ऐंद्री, ब्राह्मी, शंखपुष्पी एवं बचा कल्क….. मात्रा में देना चाहिए
#108. प्रसुता स्वीने प्रसूति पश्चात् इस दिन स्नान करना चाहिए
#109. कुमारस्य दर्शयेत् दीप आतप अनि च रुपमन्यच्च भासुरम्
#110. कुमारस्य दर्शयेत् दीप आतप अनि च रुपमन्यच्च भासुरम्
#111. पीत गव्य का दुग्ध होता है। (हारित)
#112. बालक्रीडनक पिष्टमयानी संहिता का संदर्भ है।
#113. पवित्र दंत खंडित होने पर श्राद्ध नहीं कर सकते।
#114. पवित्र दंत खंडित होने पर श्राद्ध नहीं कर सकते।
#115. मुद्गीदनाशना देवी सुराशोणित पायीनी.. की चिकित्सा है
#116. तालुमांसे कुद्धः कुरुते तालुकण्टक। संग्रह
#117. कुकुणक को दन्तोद्भेद जन्य व्याधि का हेतु माना है।
#118. शारंगधर अनुसार बालक को प्रथम माह में भेषज मात्रा
#119. प्रलापऽरतिवैचित्यैरुन्मादं चोपलक्षयेत । आधुनिक मतानुसार
#120. Route of administration of BCG Vaccine is
#121. योगरत्नाकर के अनुसार कफज नाही की गति होती है।
#122. . वाग्भट ने इस भावपदार्थ को दुष्य कहा है।
#123. वाम्भट के अनुसार रोग का कारण है।
#124. इस व्याधि का समावेश नानात्मज व्यापि में नहीं होता।
#125. तत् दुःख संयोगात व्याधय इति यह व्याधि की व्याख्या इस आचार्य ने बतायी है।
#126. इस व्याधि का वर्णन सुश्रुत ने अष्टमहागद में नहीं किया है
#127. सात्म्य’ पर्याय है।
#128. संधिशूल इस रोगमार्ग की व्याधि है।
#129. न च तुल्यागुणों दुष्य न दोषः प्रकृति भवेत’ इस प्रकार के रोगसंदर्भ
#130. Relative lymphocytosis is seen in?
#131. The most common cause of acute pancreatitis is?
#132. पुनर्मनो बुद्धि संज्ञा स्मृति चेष्टाचार विभ्रंश’ इस रोग का
#133. शुकपुर्ण गलास्यता’ इस व्याधि का पूर्वरूप है।
#134. चरक के अनुसार अस्वप्न, सततम् रुक् च यह लक्षण इस व्याधि में होते है।
#135. Myxoedema is the disease of……..
#136. मर्म विज्ञान के आधार पर स्वी श्रोणि के ‘अष्ट मर्म’ में इस
#137. शुक्र धातु का प्राकृत प्रमाण है।
#138. बालानां शुक्रगस्त्येव किन्तु सौक्ष्म्यात न दृश्यते संदर्भ है।
#139. रजस्वला स्त्री को विशेषतः रोग होता है।
#140. सुश्रुताचार्य के अनुसार ऋतुकाल का होता है।
#141. स्त्रीणामति प्रसंगेण शोकाश्चपि श्रमादपि अतिसारक योगाद्
#142. चरकानुसार रक्तप्रदर में तिक्तरस प्रयोग का प्रयोजन है।
#143. स्तम्भ पिपलिका सुप्तिमिवं कर्कशता तथा योनिव्यापद है।
#144. इस व्याधि में वायु बीजभूत दोष से गर्भावस्था में स्त्री के गर्भाशय का हनन करता है।
#145. Diameter of full term placenta is………?
#146. संग्रह के अनुसार उपविष्टक तथा नागोदर के भेद है।
#147. योनि परीक्षण के लिए उपयोगी यंत्र है।
#148. लूप लगाना इस प्रकार का संतति प्रतिबंध उपाय है।
#149. यह शस्त्रक्रिया स्त्री पर की जाती है।
#150. मक्कल व्याधि के उपद्रव स्वरूप मुख्यतः व्याधि होता है।
#151. नेत्र के 5 मण्डल से नेत्र की संधीयाँ तैयार होती हैं।
#152. कुल्या’ पर्याय है।
#153. विशोषिते श्लेष्मणि पित्ततेजसा । (सु.उ.) ।
#154. नेत्रविकृति के कारण होनेवाले शिरःशूल विशेषतः इस दोष
#155. नेत्रगत व्याधि हीनबल होनेपर निम्न में से इस अंजन का
#156. कर्णक्ष्वेडी हतानलः । इस व्याधि का सामान्य लक्षण है।
#157. बालक को कर्णशूल होनेपर बालक हमेशा कर्ण को हात लगाता है और सिर हिलाता है। इस आचार्य का मत है
#158. कर्ण में शल्य गये बालक के लिए यह विधान सत्य है।
#159. कर्ण में मधुमक्खी, कीडा आदि जाकर फुरफुराता है एवं वेदना निर्माण करता है। इस आचार्य के अनुसार यह
#160. कर्णकण्डू की चिकित्सा निम्नवत् करनी चाहिए। (सु.322/56)
#161. गर्भावस्था में नासा की उत्पत्ति इस माह में होती है। (वा.)
#162. मूर्धा सर्पन्ति पिपीलिका’ शिरोरोग का लक्षण है। (डल्हण )
#163. जीर्ण स्वरूप वातज प्रतिश्याय में उपयोगी कल्प है।
#164. रसरत्नसमुच्चयकार के अनुसार प्रतिश्याय व्याधि का
#165. रोग में दुष्ट होती है।
#166. As per modern science, how many bones
#167. शिरोरोग में यह चिकित्सा करनी चाहिये।
#168. श्रृंगाटक मर्म पर आघात होने पर उत्पन्न होता है।
#169. नस्य के लिए प्रशस्त वयोमान है।
#170. कराल मते शुष्काक्षिपाक यह व्याधि इस दोष की दृष्टि होने से होता है।
#171. … साँप के…..विषवेग में ‘सर्वांग ग्रंथि’ यह लक्षण उत्पन्न होता है। (अ.हृ.)
#172. चरकाचार्य द्वारा इस विषवेग चिकित्सा में हृदय रक्षा का निर्देश दिया है।
#173. चरकाचार्य द्वारा इस विषवेग चिकित्सा में हृदय रक्षा का निर्देश दिया है।
#174. सतरावे क्रमांक पर विष उपक्रम है।
#175. इस सर्पदंश से उपजिव्हिका होती है।
#176. The colour of post mortem lividity in cold water drowning is……… ?
#177. ….. प्रकृति भजेत’ विष का गुण है
#178. drop [can occur in……..?
#179. The usual fatal dose of aconite root is…?
#180. Teeth are chalky white in poisoning due to..?
#181. ग्रहणी रोगान्तर्गत अनिसंधुक्षणार्थ पर्पटी कल्प के साथ अनुपानार्थ देते हैं।
#182. इस चिकित्सा में मुख्यतः क्षुधान्य का उपयोग करते है।
#183. रसायन तंत्र नाम वयःस्थापन आयुमेधावलकर रोगहरणं समर्थ चा संदर्भ
#184. हाथी में उत्पन्न होनेवाले ज्वर को कहते है ? (च.नि. 1)
#185. सुश्रुतानुसार सततज्वर में दोष इस प्रदेश में स्थित होते हैं।
#186. जाम्बवास्थि स्वरूप शुकदोष पीडिका है।
#187. बस्तिनेत्र को कर्णिका होती है।
#188. बहुपित्त कामला एवं रुद्धपथ कामला के व्यवच्छेदक निदानार्थ आवश्यक होता है।
#189. मत्स्यामगन्धास्यत्वं’ इस व्याधि का पूर्वरुप है
#190. मत्स्यामगन्धास्यत्वं’ इस व्याधि का पूर्वरुप है
#191. पुराणोदकभूयिष्ठाः सर्वर्तुषु च शीतलाः । इस व्याधि का
#192. इस आचार्य ने वातरक्त व्याधि का स्वतंत्र वर्णन न करते ये वातव्याधि में वर्णन किया।
#193. भुक्तस्य स्तम्भ’ इस व्याधि का लक्षण है।
#194. वातज स्वरोपघात की चिकित्सा है।
#195. यस्य बातः प्रकुपितस्त्वमांसान्तरमाश्रितः । शोथं संजनयेत्कुक्षावतस्य जायते । इस व्याधि की सम्प्राप्ति है।
#196. अति दुर्बल व्यक्ति अति प्रमाण में अतिशीतल जल का सेवन करने से व्याधि का संभाव्य निदान है।
#197. भूख लगने पर भी चिकित्सा प्रयोजनार्थ खाना न खाना । इसका समावेश इस प्रकार के स्वेद प्रकार में किया है
#198. विरेचन की उत्तम प्रवृत्त दोष मात्रा है।
#199. पित्तदोष के लिए श्रेष्ठ विरेचन द्रव्य है
#200. पित्तदोष के लिए श्रेष्ठ विरेचन द्रव्य है
#201. …… अनिबलप्रदः । श्लोक पूर्ण किजिए
#202. . ‘सन्धानकरः शरीरस्य’ इस दोष का कर्म है।
#203. समरविक्रान्तयोधिनस्त्यक्त विषादा’ इस सारका लक्षण है।
#204. कुक्षिशूल लक्षण है।
#205. उष्ण एवं स्निग्ध द्रव्य पदार्थ सेवन से इस स्रोतस की दुष्टि होती
#206. नाभि, उर, कण्ठ….. के स्थान है।
#207. सर्वात्मपरिणामपक्ष इस न्याय को कहते है ।
#208. शरीरधातु के प्रकार हैं।
#209. मेद का उपधातु है। (शारंगधर)
#210. वाग्भट के अनुसार पुरुष रक्त का वर्णन इस प्राणि के रक्त के समान होता है।
#211. त्यच्छ व्याधि इस त्वचा के आश्रय से रहता है। (सुश्रुत
#212. …… विधृतिः । ।
#213. रस इक्षौ यथा दध्निसर्पिस्तैलं तिले यथा यह दृष्टांत इस संबंध में आया है।
#214. वसा का अंजली प्रमाण….. है (चरक
#215. Pairs of cervical nerves are…..?
#216. Haemorrhage leads to hypovolermic shock, because of reduction in~
#217. Specific gravity of semen is…..?
#218. Hypoactivity of posterior pituitary causes…..
#219. Calcitonin secrated by……
#220. Calcitonin secrated by……
#221. Which of the following germ layers is the last
#222. Chromosomal aberration in Down’s syndrome is
#223. How many constrictions are present in ureter
#224. Normally the position of uterus is—-?
#225. शरीरस्य विचयम् विचयः शरीरस्य प्रविभागेन ज्ञानमित्यर्थः
#226. Abdominal aorta enter through diaphragm at level
#227. धातुरप्येकः स्मृतः पुरुषसंज्ञकः ।
#228. पंचविशे ततो घुमान, नारी तु….. (सुश्रुत)
#229. सुश्रुताचार्य ने गर्भ की गर्भाशय अन्तर्गत स्वाभाविक
#230. मांससिरास्नाय्वस्थि….. प्रत्येकं चत्वारी चत्वारी ।
#231. शणाकारः उपधातु विशेषः येन धनुषिः नहान्ते । (डल्हण )
#232. मूलस्थान एवं विद्ध लक्षणों का गलत संबंध चुनिए ।
#233. मूलाधार चक्र स्थित दल की संख्या है।
#234. इस व्याख्या से संबंधित अवयवों का अंगुली प्रमाण 2 अंगुली है।
#235. प्रस्पंदन चेतना बेदना काश्यप के अनुसार गर्भिणी में इस माह में उत्पन्न होता है।
#236. सुश्रुतसंहिता में पाराशर के नुसार गर्भ में सर्वप्रथम इस अवयव की उत्पत्ति होती है।
#237. सुश्रुतसंहिता में पाराशर के नुसार गर्भ में सर्वप्रथम इस अवयव की उत्पत्ति होती है।
#238. शरीर में कुल अस्थि मर्म की संख्या है (सुश्रुत)
#239. गुद प्रदेशी रहनेवाला संधि प्रकार है।
#240. वंक्षणवृषयोरन्तरे…..नाम् ।
#241. योगेन्द्रनाथ सेन का कार्यकाल इस शताब्दी का है।
#242. इस ग्रंथ पर सबसे ज्यादा टीका लिखी गयी है।
#243. 243 काश्यप संहिता के निदान स्थान से सुश्रुत संहिता के शरीरस्थान में इतने अध्याय अधिक है।
#244. ज्योतिष शास्त्र पर आधारित संस्कृति है
#245. त्वचि कान्तिकरं ज्ञेयं लेपाभ्यङ्गादिपाचकम् .. (शारघर
#246. अभाव प्रमाण का समावेश इस प्रमाण में होता है।
#247. रामानुजाचार्य के अनुसार पदार्थ संख्या है
#248. प्रमाकरणं प्रमाणम् इस व्याख्या का संदर्भ है
#249. अरुणदत्त के अनुसार तंत्रदोष हैं
#250. संक्षेपाभिधानम्’ इस तंत्रयुक्ति का प्रमुख लक्षण है



