#3. सर्वधातुकलुषीकृतः खेटभूतो गर्भ। इस मांस का वर्णन है।
#4. वल्ली फलों में श्रेष्ठ होता है।
#5. ऋतु एवं आहार की जोडियाँ मिलाए। 1. शरद 2. वर्षा 3. ग्रीष्म 4. बसंत | a. लघु रुक्ष भोजन b. पानकं पंचसार c. सहक्षौद्र माध्वीकारिष्ट d. हंसोदक
#6. निम्न में दिवास्वप्न अयोग्य रोगी ।
#7. सुश्रुत नुसार दिवास्वाप से दोष प्रकोप होता है।
#8. बर्फ का गोला को पिघलाकर प्राप्त किया हुआ जल को कहते हैं।
#9. निम्न में संतर्पण जनित व्याधि है।
#10. उदावर्त’ के प्रकार है। (सु.च.) काश्यप
#11. ‘भू’ का समावेश इस में होता है।
#12. .. चरकनुसार यह निराग्निस्वेद नहीं है।
#13. स्वभाववाद’ इस आचार्य की देन है।
#14. रोपण चुणीजन की मात्रा प्रयुक्त होती है। सु.
#15. वैष्णवी व भूतधात्री निद्रा का वर्णन क्रमशः इस आचार्य ने किया।
#16. स्वेदाग्निजननी…. वातवर्चोऽ नुलोमनी ।
#17. जीमूतक के योग है।
#18. व्यायाम है।
#19. मलय पर्वत से आने वाला दक्षिण दिशा का वायु ऋतु में बहता है।
#20. फलिनी व मूलिनी द्रव्य की संख्या क्रमशः है।
#21. दुर्बलाग्नि इस स्त्रोतस के दुष्टि का हेतु है।
#22. सेवन अयोग्य पदार्थ है।
#23. ‘हिताशी स्यान्मिताशी स्यात् काल भोजी जितेन्द्रियः इस रोग के संदर्भ के बारे में कहा है।
#24. निपीडितो नोन्नमति’ लक्षण है।
#25. अतिस्थूल पुरुष में कर्षणार्थ चिकित्सा सूत्र है।
#26. मान’ का समावेश इसमें होता है।
#27. ……… के बाद प्रायोगिक धूमपान वर्ज्य है।
#28. मृदुकरोति स्रोतांसि तथा प्राणधारण कर्म है।
#29. शीतज्वर के उत्पत्ति में कारणीभूत दोष है।
#30. जीर्णे च अत्यर्थ वेदना इस व्याधि का लक्षण है।
#31. ‘कुशामलनिर्युहे श्यामाकांना’ सिद्ध यवागू है।
#32. श्रीमद व्यसनसूदनम् गुण से युक्त है।
#33. वमनार्थ मदनफल पिप्पली की मात्रा ।
#34. हृदयपार्श्वपीडा’ यह लक्षण इस अवस्था में उत्पन्न होते है।
#35. ‘कन्दुसंस्थान’ इस स्वेद प्रकार की विशेषता है।
#36. वाग्भटानुसार शमन लंघन के प्रकार है।
#37. ज्ञानार्णब इस ग्रंथ का कर्ता है।
#38. ‘कारण’ अर्थात है।
#39. बहिपरिमार्जनार्थ श्रेष्ठ द्रव्य । च.
#40. निम्नतः उभयतो भागहर द्रव्य है। :
#41. सूर्य की तेज से दिन में चंद्रमा का न दिखना है।
#42. ……. कषाय मधुरं पथ्य।.
#43. ‘सर्षपकल्क अवलिप्तवत’ वेदना होती है।
#44. काय शिथिल करोति लक्षण….. रस अधिक सेवन करने से निर्माण होता है।
#45. महागद कितने प्रकार के है।
#46. ……क्लेशकराणां श्रेष्ठ है।
#47. त्रिदोषज व्याधि चिकित्सा में होते है।
#48. निद्रा का बोधन हेतु है। (सुश्रुत)
#49. स्नैहिक धूमपान का काल है। संग्रह
#50. सहस्य प्रथम मांसि यह उपक्रम करना चाहिए।
#51. निष्कृष्यते इवाक्षिणी’ लक्षण इस शिरोरोग में होते है।
#52. ‘श्रीमद् भ्राजिष्णु’ इस सार का लक्षण है।
#53. हृद्य अन्न सेवन इस वातव्याधि में सेवन करना चाहिये।
#54. इस प्रमाण से धर्म अर्थ काम की सिद्धि की जा सकती है।
#55. सुश्रुतनुसार प्रथम दिनचर्या उपक्रम है।
#56. अपस्मार झ्वा गतम, बिना बिभीत्स चेष्टाम है।
#57. वाग्भट के नुसार शमनीय अपतर्पण के भेद है।
#58. पराक्रम सुखं’ का लाभ है।
#59. मूलासब की संख्या है।
#60. ‘वृत्ताकार अलोचनम्’ स्वेदन प्रकार में होता है।
#61. आचार्य डल्हणनुसार रस की तीक्ष्ण गति समान है।
#62. वाग्भट के अनुसार यवसन्निभ धूमवर्ती की लंबाई होती है।
#63. चरक के नुसार त्रयोपस्तंभ में इसका समावेश होता है।
#64. आमदोष वर्धन में श्रेष्ठ है।
#65. सालसारादि गण का कर्म है।
#66. तैल द्रव्य है।
#67. क्षुधाहर यवागु में अपामार्ग क्षीर का अनुपान है।
#68. अक्षीव’ द्रव्य का इस महाकषाय में समावेश है।
#69. सबसे लघु मांस इस अवयव का होता है।
#70. अल्पबलवान पुरुष में हृदरोग हुआ हो तो लंघन भेद का उपयोग करें।
#71. रोगमादौ परीक्षेत ततनोनन्तर यौषधमम्।… संदर्भ
#72. शरीर के बल, वर्ण, ओज की रक्षा का कारण है।
#73. स्थिरगुण के विरुद्ध गुण है।
#74. अव्यथा’ द्रव्य का पर्यायी नाम है।
#75. स्वेदन अतियोग में इस ऋतुसमान क्रिया करें।
#76. कुष्ठ रोग में स्नेहपान देना हो तो इस द्रव्य से सिद्ध करें।
#77. गांग एवं समुद्र जल के भेद है।
#78. दोष कोष्ठ से शाखा में जाने का कारण नहीं है।
#79. अतिसार यह व्याधि मार्ग का है।
#80. चरक संहिता के प्रथम अध्याय में कफ का प्रथम गुण बताया है।
#81. योग्य मिलान कीजिए। a)सुखसाध्य b) कृच्छ्रसाध्य c) याप्य d) प्रत्याख्येय ॰॰ i) मर्मसन्धिआश्रितम् ii) गर्भिणीवृद्धबालानां iii) न च कालगुणतुल्य iv) सर्वमार्गानुसारीणी
#82. योनि विशोधन निम्नतः स्नेह का गुण है।
#83. चरक, सुश्रुत, संग्रहकार एवं अष्टांगहृदय में शारीरस्थान के अध्याय है।
#84. चरक संहिता मुख्यतः इस दर्शन पर आधारित है।
#85. सर्वज्वरान हन्ति…. तु दीपनः । गण कर्म है।
#86. शीतं शुचि शिवं भृष्ट विमलं लघु षड्गुणम्….!
#87. प्रदोषे……
#88. करहाट के विरेचन योग है।.
#89. चिकित्सा में सफलता प्राप्त करने के उपायों का वर्णन इस स्थान में किया है।
#90. वेगावरोध जन्य विकार में वातघ्न औषधोपचार करना चाहिए।
#91. ग्रहणी अर्श विकार नाशक है।
#92. अहरहर्गच्छति इति…..। सुश्रुत
#93. केशशातनस्फुटनधूमनार्थ मूर्धी तैल का प्रकार उपयोगी है।
#94. बाग्भट के नुसार सर्वात गुरु स्नेह है।
#95. दौर्बल्यकराणां…।
#96. शमन कोपन स्वस्थहित यह द्रव्य प्रकार आचार्य ने बताए है।