#55. एकपथ रोग, न अतिपूर्ण चतुष्पदं स्थिति में रोग होता है।
#56. चरक संहिता के कुल 7 परिषद में से एक परीषद इस अध्याय में हुई थी।
#57. क्षुधारोगनाशिनी यवागू में अपामार्ग, क्षीर के साथ है।
#58. ‘कृच्छ्रजन्मप्रशमो’ लक्षण इस शोथ का है।
#59. विरेचन आश्रय में इसका समावेश नहीं होता।
#60. इस ऋतु के बिहार में अगरू लेप का उल्लेख है।
#61. दीपन भेद का वर्णन अपतर्पण में किया है।
#62. बहि: परिमार्जनार्थ श्रेष्ठ द्रव्य है।
#63. कक्षा यह व्याधि… दोष का नानात्मज विकार है।
#64. रसनार्थी रसस्तस्य द्रव्य….. तथा।
#65. इस काल में नस्य का सेवन नहीं करना चाहिए। (च.सू.1/57)
#66. ‘गुरु’ यह गुण द्रव्य का नहीं है।
#67. तंत्रस्य कर्ता प्रथमम्….।
#68. पुनर्जन्म सिद्धि के अनुसार जोडियाँ लगाए । प्रमाण – 1. आप्तोपदेश 2. प्रत्यक्ष 3. अनुमान 4. युक्ति | लक्षण – a. कर्तृकरण संयोगात् क्रिया । b. कर्मसामान्ये फलविशेष। c. लोकानुग्रहप्रवृत्त । d. फलाद्बीजमनुमीयते ।
#69. यह पुरीष क्षय का लक्षण नहीं है।
#70. ‘क्रिमीन हिनस्ति’ इस रस का गुण है।
#71. क्रियापथं अतिक्रान्ता केवलं देहमाप्लुता।
#72. पुनः परिणाम उच्यते ।
#73. ‘पिण्डिकोद्वेष्टन’ इस दोष का विकार है।
#74. पाप्मोशमनं सौभाग्यकरं हर्षलाघव कर्म है।
#75. चरक सूत्रस्थान के संभाषा परिषद वर्णित है।
#76. सरोवर में रहने वाले मत्स्यों का अधःप्रदेश होता है।
#77. च सोमराजीविपाचिता ।
#78. रक्तदोष की विशिष्ट चिकित्सा है।
#79. निमित्यपुर्वरूपाणाम् मध्यम बले व्याधि है।
#80. सुखं संचारी’ गुण है।
#81. …..व्याधिकराणां ।
#82. चरकानुसार त्रयोपस्तंभ में इसका समावेश होता है।
#83. अग्निदग्ध में श्रेष्ठ उपक्रम है।
#84. बृंहणनां श्रेष्ठ कर्म है।
#85. सुश्रुतनुसार 6 वीं स्नेहबस्ति इस धातु को प्राप्त होती है।
#86. संकल्पो……।
#87. ‘जल’ का श्रेष्ठ कर्म हैं।
#88. योग्य आहार मात्रा संबंधी विधान है।
#89. उपघात एवं उपताप यह दूषित… प्रदोषज विकार है।
#90. परा, अपरा निद्रा के भेद इस आचार्य ने दिये है।
#91. धातुमान संस्थान व्यक्ति यह वायु का कर्म है।
#92. रोपणार्थ श्रेष्ठ शलाका है।
#93. सामान्य व्याधि है।
#94. अवगाहन स्नेह मांसधातु तक पहुंचने में मात्रा काल लगता है।
#95. हंसोदक’ का वर्णन इस ऋतु में किया है।
#96. ब्राह्ममुहूर्त में उठने के बाद दिनचर्या का क्रम करें। वा.
#97. 1) गुड 2) खांड 3) चीनी 4) मत्स्यण्डिका उत्तरोत्तर निर्मल है, योग्य क्रम लगायें।