Charaka Samhita Kalpa-Siddhi Set – 4
Results
#1. संशोधन के बाद सेवन से सर्वशरीरगत व्याधि होता है।
#2. मद्यपि व्यक्ति में पेयादि क्रम से संसर्जन करने से हानी होती है।
#3. स्निग्धेन गुरुकोष्ठेन सामे बलवह औषधम्। व्यापद हेतु है।
#4. चरक के अनुसार नेत्र दोष संख्या है।
#5. कफप्रसेक’ लक्षण है।
#6. बस्ति अतियोग में सुश्रुत कि विशेष चिकित्सा है।
#7. निरूबस्ति अयोग में चिकित्सार्थ स्वेदन देना चाहिए।
#8. जीवणीय क्षीराष्टकसाधित नावन प्रयोग करे।
#9. बाला’ में प्रयुक्त क्वाथ मात्रा का प्रमाण होता है।
#10. शारंगधर के अनुसार कौनसी अनुवासन बस्ति अस्थि तथा मात्रा को क्रमशः स्निग्ध करती है। शा.उ. 5/37
#11. . बस्ति निर्माता दोष एवं लक्षण लिखे न भावयति…….।
#12. चरकनुसार विरेधन जघन्य शुद्धि में प्रवृत्त दोष मात्रा मान है।
#13. यथाण्ड तरूण पूर्णतैल पात्र, गोपाल इव दण्डिका’ संदर्भ
#14. उर्ज और सह इन दो मास का ऋतु होता है।
#15. निम्नतः स्नेहवस्ति व्यापद नहीं है।
#16. इस पंचकर्म के बाद धूमपान वर्ज्य है।
#17. ………..वर्ण प्रकाशिनी ।
#18. बिना वमन के विरेचन देने से यह व्याधि होता है।
#19. कुटकी इस कोठप्रकार के लिए उत्तम विरेचन है।
#20. सिर्फ यह निरूह बस्ति भोजन के बाद दे सकते है।
#21. निम्न में से बस्ति निर्माता का दोष है।
#22. सुश्रुतनुसार स्नेह व अनुवासन बस्तिद्रव्य प्रमाण क्रमनुसार
#23. उत्तरवस्तिद्वारा गर्भाशयशुद्धयर्थं प्रयुक्त स्नेहमात्रा
#24. स्त्री में उत्तरबस्ति नेत्र की लम्बाई होती है। चरक
#25. अधिक मात्रा में धुमपान करने से निम्न में से कौनसा उपद्रव उत्पन्न होता है शा.उ. 9/7
#26. संसर्जनक्रम में अम्ललवण के पश्चात् रस सेवन करे।
#27. स्नेहवस्ति अतिप्रयोग से…..लक्षण उत्पन्न होते है।
#28. एक 30 वर्ष का पुरुष रुग्ण में अजीर्ण विष जैसी आत्ययिक लक्षण दिखाई दे रहे थे। अगर ऐसे रूण में वमन करने का विचार किया जाता है, तो इस द्रव्य से चमन किया जा सकता है। (आधार सुश्रुत)
#29. विरेचन के बाद निरूह बस्तिदिन पश्चात् देना चाहिए।
#30. गरागरी इस रोग में हितकर है।
#31. व्रणनेत्र का प्रमाण होना चाहिए।
#32. कण्डुपदही गुरुता स्त्रोतसां कफसंस्त्रवः निम्न में से किसका लक्षण है। शा.उ. 8 /58
#33. फलश्रृत होने वाला स्वप्न प्रकार है ।
#34. आचार्य बडीशनुसार…… वमनार्थ श्रेष्ठ है।
#35. वात प्रधान विकार में प्रयुक्त निरूह बस्ति में कुल द्रव्य से स्नेह की मात्रा होनी चाहिए।
#36. …….. भवेत स्नेहो निर्दोष उभयार्थकृत। इस नस्य के संबंधित है। च.सि. 9
#37. वमन पश्चात विरेचन दिन बाद और निरूह बस्ति…..वें दिन करे।
#38. भेदोमांसोदकोपमयू’ इस अतियोग का लक्षण है।
#39. मदनफल कषाय के कितने योग है।
#40. मृदुकोष्टी व्यक्ति को अतितीक्ष्ण बस्ति देनेवर व्यापद होता है।
#41. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बालक को नस्य दे सकते है।
#42. विना स्नेह स्वेदन, गुरुतीक्ष्ण अतिप्रमाण में बस्ति देने से…. व्यापद होते है।
#43. इस विषय को आगे कहा जाएगा यह इस तंत्रयुक्ति का उदाहरण है।
#44. संग्रहनुसार वमनव्यापद संख्या है।
#45. जीवादान इस उपद्रव की चिकित्सा है।
#46. संग्रहनुसार अनुवासन बस्ति का धारणकाल है।
#47. व्याधि एवं बल का विभ्रंश वमन व्यापद का लक्षण है।
#48. बहुफेनरसा पर्यायी नाम है।
#49. स्त्री के कन्यावस्था में उत्तरबस्ति नेत्र मूत्रमार्ग में प्रवेशित करना चाहिए।
#50. निरूह बस्ति की उत्तम मात्रा है।
#51. कृतवेधन का प्रयोग इस व्याधि में निर्दिष्ट है।
#52. उच्चभाषण इस महादोषकरभाव से प्रायः व्याधि होता है।
#53. बस्ति प्रणिधान दोषों में लवण के अति प्रयोग से उत्पन्न होता है।
#54. बस्ति द्रव सान्द्र हो जाये तो पुरुष में लक्षण उत्पन्न होता है।
#55. वाग्भटनुसार मात्रा बस्ति की उत्तम मात्रा है।
#56. इस व्याधि में अनुवासन बस्ति निषिद्ध है।
#57. चरकसंहिता नुसार सूत्रस्थान को …….. कहते है। A) B) (C) D)
#58. शोधन तथा संसर्जन क्रम के बाद इस दिन घृतपान करना चाहिए।
#59. अरुणाभ त्रिवृत्त का यह अंग विरेचन में श्रेष्ठ है।
#60. इस विरेचन अनर्ह रोगी को विरेचन देने से ‘क्षीण देहं वायु प्राणोपरोधं कुर्यात्’ लक्षण उत्पन्न होता है।
#61. रक्तातिसार की चिकित्सा में इस का प्रयोग करना चाहिए
#62. सुश्रुत संहिता के आधार पर 24 तोला बस्ति द्रव्य में, कितने रुग्ण को अनुवासन बस्ति दे सकते है।
#63. अनुवासन बस्ति इस गुणात्मक होती है।
#64. चरक के नुसार 20 वर्ष के लिए बस्तिनेत्र छिद्र जाडी होनी चाहिए।
#65. वाग्भट के काल बस्ति में अनुवासन बस्ति की संख्या है।
#66. आत्रेय नुसार कटुतुम्बी का रोगाधिकार है।
#67. …….. बस्तय सर्वकालं देय च.सि. 12
#68. सुश्रुतनुसार 8 वर्ष के नुसार नेत्रच्छिद्र…….होना।
#69. बस्ति अयोग में निम्नतः चिकित्सा दे।
#70. आध्मान’ यह बस्तिव्यापद……. के कारण होता है।
#71. पितान्त वमन यह वमन का लक्षण है।
#72. संग्रहकार ने इस प्रकृति का वर्णन चरकाचार्य से अधिक किया है।
#73. चरकाचार्य नुसार कर्म बस्तियों में कुल स्नेह बस्तियाँ होती है।12 अनुवासन
#74. इस स्थिति में रोगी को बस्ति देनी चाहिए।
#75. क्लम’ इस निरूह बस्ति व्यापद की चिकित्सा है।
#76. क्षीरोभोजिन्’ इस व्यापद की चिकित्सा है।
#77. रास्ना, पितद्रु बैल प्रयोग स्नेहव्यापद की चिकित्सा है।
#78. यह बस्ति निरुपद्रवकारी है।
#79. चरक संहिता अध्ययन से लाभ होता है ।
#80. क्वाथप्रधान वस्ति को कहते है।
#81. नस्य के पश्चात् यह उपक्रम करे।
#82. स्नातस्य भुक्तभक्तस्य रसेन पयसाऽपि वा । यह इस संशोधन कर्म का पूर्वकर्म है।
#83. श्रेष्ठ विरेचक स्वरस है।
#84. सुश्रुतनुसार 1 साल के लिये प्रयुक्त निरूह द्रव्य मात्रा
#85. सुश्रुतनुसार 1 वर्ष बालक के लिए नेत्र छिद्र प्रमाण होना चाहिए।
#86. उष्ट्र के लिए बस्ति नेत्र की लंबाई होनी चाहिए।
#87. निरूह बस्ति का धारण काल है।
#88. क्रिमीनाशनः कर्म वर्णन इस बस्ति के विषय में आया है।
#89. वमन विरेचन पश्चात्……….. वे दिन घृतपान करे।
#90. सवात, न सम्यक प्रपीडित यह हेतु बस्ति व्यापद को निर्माण करता है।
#91. बृहण नस्य की उत्तम मात्रा है
#92. मूत्र विहन्ति संस्तम्भम् अंगगौरव वेष्टनैः। यह लक्षण है
#93. धनुर्वदनमयेत गान्नाण्या’ लक्षण है।
#94. मृदंगफल’ इस द्रव्य का पर्याय है।
#95. शेफश्चातयर्थमुस्तिक्तं निःसृतौ वृषणी भृशम्’ यह लक्षण है।
#96. उच्चभाष्य’ इस महादोषकर भाव से व्याधि उत्पन्न होते है।
#97. शारंगधर के अनुसार विरेचन का काल- शा.उ. 4/3
#98. बिल्वादि पंचमूल बस्ति इस बस्तिव्यापद में देते है।
#99. अनुवासन बस्ति के बाद नस्य नहीं देना चाहिए।
#100. इस आचार्य ने रेचन तर्पण शमन यह नस्य प्रकार बताये।



