#1. . संज्ञासंज्ञि संबंध ज्ञानम् … । (तर्कसंग्रह)
#2. ताली बजाना’ यह इस विभाग का उदाहरण है ।
#3. इंद्र देवता की दिशा है ।
#4. तेज महाभूत के प्रशस्तपादोक्त गुण …. है ।
#5. अपृथक्भावो भूम्यादिनां गुणैर्मतः ।
#6. भट्टार हरिश्चंद्र के अनुसार अर्थाश्रय है ।
#7. भट्टारहरिश्चन्द्र ने सामान्य के भेद माने हैं-
#8. विचार्य’ इसका समावेश मान के में होता है ।
#9. कारणभेद से संभाषा के प्रकार है ।
#10. अंतःकरण चतुष्टय में इसका समावेश नहीं होता ।
#11. पंगु – अन्धन्याय निम्नदर्शन में मिलता है।
#12. चार्वाक ने प्रमाण बताये है ।
#13. व्याप्तिविशिष्ट पक्षधर्मता ज्ञानं– ।
#14. इंद्रिय के लक्षण पाणिनी सूत्र में — अर्थों से युक्त है।
#15. परामर्शजन्यं ज्ञानम्
#16. द्वेष इस गुण का लक्षण है ।
#17. आद्यपतनस्य असमवायी कारणं….।
#18. ‘उपस्थ’ की देवता है ।
#19. काव्यशास्त्र सम्मत प्रमाणों की संख्या है।
#20. मनोव्याकरणात्मकम् | यह मन का लक्षण – ने बताया है।
#21. षोडश विकारों में निम्न में से इसका समावेश नहीं होता। (चरक)
#22. इस आचार्य ने अभाव यह पदार्थ माना नहीं ।
#23. ज्ञानवती और मुढवती इसके प्रकार है ।
#24. इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष के प्रकार है ।
#25. अतिवाहिक पुरुष का वर्णन …….. इस आचार्य ने किया है
#26. सुश्रुतानुसार पदार्थ संख्या है।
#27. अविद्या के प्रकार है ।
#28. निष्क्रमण, प्रवेशन ये इस महाभूत के गुण है ।
#29. निम्न में से इसका समावेश परमपदार्थ में होता है ।
#30. प्रत्यक्ष ज्ञान के बाधक कारणों में इसका समावेश नहीं होता।
#31. शास्त्र की त्रिविध प्रवृत्ति में इस का समावेश नहीं है ।
#32. का रूप भास्वर शुक्ल है ।
#33. अष्टाध्यायी के लेखक हैं।
#34. शक्तिग्रह कितने है ?
#35. अधर्मजन्यम् प्रतिकूलवेदनीयं…. । (प्रशस्तपाद)
#36. योगदर्शन ने सांख्यदर्शन से यह तत्त्व अधिक माना है।
#37. पृथ्वी पर स्थित जल को कहते हैं।
#38. उर्ध्वगति इस तेज की होती है ।
#39. नाम यत् प्रतिज्ञातार्थ साधनास हेतुवचनम् ।
#40. . मध्वाचार्य ने द्रव्य बताये है ।
#41. सर्वव्यवहार हेतुः ज्ञानं … ।
#42. पंचतन्मात्राओं की उत्पत्ति इस अहंकार से हुई है।
#43. प्रसिद्ध साधर्म्यात साध्य साधन — । (न्यायदर्शन)
#44. यथार्थ अनुभवः ।
#45. लवण रस की उत्पत्ति में यह महाभुत भाग लेता है ।
#46. धूम को देखकर गुढरूपी अग्नि का अनुमान करना’ यह इस अनुमान का उदाहरण है ।
#47. तर्कसंग्रह के अनुसार कारण के प्रकार है ।
#48. कणोपनिषद के अनुसार ‘मन’ यह जीवनरथ का है |
#49. कणाद मत से यह चेतनावान है ।
#50. तेज महाभूत का रूप है ।
#51. मांसमाप्यायते मांसेन। यह इस सामान्य का प्रकार है ।
#52. शब्द गुण है क्योंकि नेत्र से दिखाई देता है’ यह – असिद्ध हेत्वाभास है ।
#53. दर्शन के प्रमुख भेद कितने हैं ?
#54. अयथार्थ अनुभव के प्रकार है ।
#55. बर्फ (हिम) को स्पर्श किये बिना उसकी शीतलता का ज्ञान होना — यह लक्षण है ।
#56. उपमान को स्वतंत्र प्रमाण माना है।
#57. अभाव के प्रमुख प्रकार है ।
#58. किसी एक वस्तु का एकदेश ज्ञान न होकर समग्र स्वरूप का ज्ञान न होना ………… प्रमाण है ।
#59. यह मूर्तद्रव्य नहीं है ।
#60. लक्षणदोष नहीं है।
#61. हिरोक्लिटस् के अनुसार जगत् का मुलतत्व है ।
#62. सत्त्वरजो बतुलो ।
#63. सिद्धांत के प्रकार है।
#64. अंत: चेतनद्रव्यों के प्रकार है।
#65. हाथ में ध्वज लेकर है वह नेता है’ यह इस लक्षण का उदाहरण है ।
#66. पूर्वमीमांसा’ दर्शन के रचयिता है ।
#67. आत्मगुण कितने है ?
#68. सामवेद से संबंधित उपनिषदों की संख्या कितनी है ?
#69. शब्द तन्मात्रावाले इन्द्रिय का स्थान है ।
#70. ‘आशा’ निम्न में से किसका पर्याय है ?
#71. नैयायिक प्रमाणविचार का ने स्वीकार किया है ।
#72. इंद्रियांतर संचार करना इसका लक्षण है ।
#73. उत्तमशास्त्र के कितने लक्षण बताये है।
#74. सुश्रुतोक्त तंत्रयुक्तियाँ कितनी है ?
#75. मिथ्य आहारविहार रोग का ……… कारण है।
#76. यह पदार्थ आयुर्वेद को अमान्य है ।
#77. वैशिषिक दर्शन के अनुसार आकाश का लक्षण है ।
#78. खलु तक युक्त्यपेक्षः ।
#79. स्वर्णादि धातु गत तेज निम्न में से है ।
#80. विष्णुपुराण के अनुसार आत्मा के प्रकार है ।
#81. आयुर्वेद के अनुसार अर्थापत्ति का समावेश इसमें होता है?
#82. प्रशस्तपाद के अनुसार आकाश महाभूत में यह गुण नहीं होता ।
#83. वैभाषिक सम्प्रदाय……..से संबंधित है ।
#84. प्रत्यक्ष ज्ञान के बाधक भाव या हेतु है ।
#85. पंचीकरण सिद्धांत इस दर्शन ने बताया है ।
#86. प्रत्यक्ष प्रमाण किसने बताया है ।
#87. केवल अद्वैतवाद इस आचार्य ने बताया है ।
#88. स्तम्भने । (हेमाद्रि)
#89. तात्पर्य टीका ग्रंथ इस दर्शन से संबंधित है ।
#90. इमली’ शब्द श्रवणपश्चात् मुख में लालास्राव होना यह कौनसा प्रमाण है ?
#91. जैनदर्शनोक्त अजीव सृष्टी के प्रकार है ।
#92. वैशेषिकोक्त प्रथम पदार्थ है ।
#93. न्यायदर्शन में प्रमाण वर्णित है ।
#94. नियमन निम्न में से इसका कर्म है।
#95. प्रतीची दिशा की देवता …….. है।
#96. दशपदार्थशास्त्रनामक ग्रंथ इस दर्शन से संबंधित है ।
#97. निम्न में यह शास्त्रज्ञान का उपाय नहीं है ।
#98. गुणों से युक्त हेतु को सद्हेतु कहते है ।
#99. द्वैपायन इस दर्शन के कर्ता है ।
#100. क्रियायोग में निम्न में से इसका समावेश होता है ।
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